कीचक - वध | Kichak Vadh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ढ् कीचक-वघ
रत्नप्रभा
तनदी जी, व्यर्थ हो तुम हमारी हंसी क्यों उड़ा रही हो ?
सौदामिनी
ठोक तो है मदारानी जी । कहते हैं उत्तर प्रदेश को नारियाँ, सुन्दरियाँ होती हैं ।
मेरी माँ भी वहीं की थी ।
मन्दहासिनी
ग्रोहो ! तभी तो तु चन्द्रकला-सी रूपमती उत्पन्न हुई है न ?
सोदा मिनी
तु चुप रह छिछोरी । मे, महारानीजी, श्रापसे सच कहें, उत्तर प्रदेश के सारे
पुरुष रुपहीन होते हैं । श्राकषरण का तो उनमें नाम ही नहीं । दक्षिण प्रदेश को
कुरूप कहकर चाहे जितनी नाक भौं सिकोड़ी जाय, पर यहाँ के पुरुषों में कंसी
मोहिनी होती है ? महाराज कीचक ने जो सभी के हौसले पस्त कर दिये हैं, तो
उसका कुछ श्रथ तो है ही । हाथ कंगन को श्रारसी क्या ? देख लीजिये न । महारानी
द्रौपदी की दासी, यह संरन्घ्नी, कंसी तारिको के समान लिलमिल करती है !
दूसरी श्रोर वहू वत्लभ पण्डित या कंकभट्ट ! मुझों के तेजहीन मुखों की श्रोर देखा
तक नहीं जाता ।
सरन्धो
सखी सौदामिनी, बिजली यदि कभी-कभी चमके, तो श्रच्छी लगती है, परन्तु वही
यदि लगातार चॉंधियाती रहे, तो उसीसे लोग भयभीत होकर मुंह फेर लेते हैं ।
रत्नप्रला
सचमुच ननदी जी, श्रापकी यह नई दासी श्रत्यन्त रूपवती तो है हो, पर उसकी
बोली भी मीठी श्रौर छू देनवाली है । यदि हस्तिनापुर की सभी नारियाँ ऐसी हो
हुई, तो मत्स्यदेश्ना की स्त्रियों को चाहिए कि वे श्रपने पतियों को, उनकी श्रोर कॉँकने
तक न दें ।
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