पुनर्मिलन | Punarmilan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
358
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पुनर्सिलन १७
उस धूम-घुन्ध वाले अपने रसोइ-घर में ही उसे घुसने दिया |
लेकिन जव बह उदार-मना बूढ़ी; उस नई-नवेली को;
अत्यन्त आवद्यक गरस पानी वाला स्नान-घर; साधारण आँवले
का तेठ; मासूढी संदूछ-साचुन, एक सस्ता आदस-कद आइना न
दिखा सकी; तब गद्देदार कुर्सियाँ; रोजवुड की मेज; गोद्रेज की
आलमारियाँ; स्नो-पाउडर--आदि वह कहाँ से छाकर देती ? फिर
सोटे-मोटे उपन्यास; आकाग-वाणी के गान; चार चित्र-पट,
विविध पत्र-पत्रिकाओं (जिनके जंगछ में ही उसका जीवन बढ़ा
था) की चर्चा ही फिजूढ । उसकी सहानुभूति और साधन में
साधारणतया छत्तीस का ही सम्घन्ध दीख रहा था। वह
ममतामयी चाहती तो थी बहुत-कुछ; पर छाती कहाँ से ?
रसोई में खट्टी कड़ी और चटनियों की ही प्रचुरता पाई जाती
थी | तरकारियाँ बाहर से कम खरीदी जातीं । भोजन में घी का
उपयोग चरणास्रत के तौर पर ही हुआ करता था । छोंक-वघार
की तो बात ही अछग, इडछी और दोशे मे भी तेठ का ही मेठ
मिलाया जाता ! हो; वह तेल अवदय मीठा होता--अकड़॒वा
कदापि नहीं । दृद्दी के दु्यन यदा-कदा ही हो पाते--दोनों जून
अक्सर मट्टे का ही महद्दोत्सव मनाया जाता । इन सब पदार्थों
की अनाभ्यासिनी उस अमीर घर की ठड़की को; अगर आए-
दिन सिरःददे और पेट पीड़ा होती है; तो इसमें किसी को आश्यये
ही कया होता ?
ओर; वहाँ पिद-ग्रहद चाठा बह विशाल पुष्पोद्यान भी तो नहीं
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