सुबाहुकुमार | Subahukumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्व्स नि चिस्था सत्य काल का चसूता द धार स्वप्ावयथा हि पुनजन्म का नमूना दे । पवेद्रावस्था में जिस प्रकार 236 ' शरीर के निश्वल पढ़े रदने पर भी श्रात्मा स्वप्र- जन्म लेता है, उसी घरकार सत्यु दोने पर छोर शरीर निय्यल दो जाने पर भी आत्मा दूसरी जगद जन्म लेता है। यदि निद्राचस्था घोर सचप्रावस्था पर मजुष्य भली प्रकार चिचार करे, तो उसे शात्मा के श्रस्तित्व छर पुनर्जन्म के कट चिपय में काई सन्देद न रे । दे जस्वू! घारिणी रानी झपने सुन्दर सुसज्जित तथा स' गन्घित शयनागार मे कोमठ्ठ शय्या पर सो रददी थी । चद न तो गाढ़ निद्रा में दी थी घोर न जागदी रही थी ! इतने में उ- सने पक कल्याणकारी सप् देखा । खम्म में उसने यद्द देखा कि पक केसरी- लि्- जिलकी गर्दन पर खुन्द्र-खुन्दर सनदरी वाल विखर रदे दें,दोनो ांखें चमकी ली हैं,कंधे उठे हुए हैं पूंछ टेढ़ी दो रद्दी ददे-जंभाइ(वगांली) लेता हुआ श्ाकाशस उतर कर! मेरे मुंद में घुल गया दे । इस स्वर. को देखने से धारिणी रानी की नींद खुल गई । शुभ स्वप् के देखने से धारिणी रानी अवन्मीय .. आनन्रें (१३)




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