वीर - विभूति वर्द्धमान महावीर - तीर्थकर महावीर भाग - 1-2 | Veer - Vibhuti Vardhman Mahaveer - Teerthakar Mahaveer Bhag - 1-2

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Veer - Vibhuti Vardhman Mahaveer - Teerthakar Mahaveer Bhag - 1-2   by उदय जैन - Uday Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फ लोक को सच्चा मार्ग दिखाया हो, वास्तव में वह पूज्य है- माननीय है । पर हमें उस पुस्तक परुपणा के बारे में बहुत कुछ जान लेना है । वेद ग्रन्थों में जो जो विष जिन जिन ढंगों से वर्णित हैं, वे वास्तव में श्रपने ढंग के निराले श्रौर एक ही हैं । उस समय का वह सादित्य हम सबके लिये भ्रनुकरणीय जरूर था पर उस साहित्य के सभालोचक या साहित्यज्ञ पण्डित उनका । वेचन, उनकी व्याख्या-अ्रथें व्यब्जना श्रादि किन रूपों में करते हैं-किस तरह वे स्वार्धास्ध हो अ्रपने स्वार्थ हो साधते लेकिन सांसारिक वासनाशों की पुर्ति में उनका ग्रथे ले घसीटते हैं । दनक। बरिवेवन य.रने में एक भारी ग्रन्थ की श्रावइ्यवता हो जाती है । थोड़। सा विवेचन किये बिना भ्रागें बढ़ना हमारे लिये पथ प्रदर्शक नहीं बन सकेगा, परि- चायक नहीं बन सकेगा, सन्वन्ध का रिवता टूट जायगा एनदर्थ यहां कुछ विवेचन केवल प्रयोगों का कर नो हमारे 'लिये विशेष ज्योतिकर श्र समयज्ञ हो सर्केगा । भ्रश्वमेघ--- अ्रहा ! देखने हुए रोमाब्च खड़ हो जाते हैं कि इचर भ्रचवमेघ यज्ञ की घन सथार हों रही है । अदवमेघ यज्ञ करने वाला एक राजा है जो विदव विजयी या राष्ट्र विजेता है, वही यज्ञ करता है श्रीर कराने वाले थे ऋषि महोदय हैं जो श्रपने मन्त्रों द्वारा उस यज्ञ की पूर्ति करते हैं । यज्ञ कया एक माया का अखाड़ा है-द रुणा का झागार है । सर्वत्र मानव लोगों की धूम मची हुई है। कोई वेदिका




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