जैन भजनावली | Jain Bhajanavali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
88
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)रे
पहाड़, पत्थर, पृथ्वी, जल मुक्कको किया
वायु, भ्रग्ति था बनाया भाग जा ॥ ७ ॥-
अब तो जयकदान को जिनेदबर बाणी से ।
रत्त सम्यर मिल गया तू -भाग जा ॥ ८१
- रैरे व
चाल:- (कब्वाली) सखी. सावन बहार आई मुलाये जिसका.जी चाहे
श्री भक्तामर का वर्णन करू क्या कर नहीं सकता'
लिखू' तारीफ क्या इसकी करू क्या लिख नहीं सकता ॥ १ ॥।
ये फलदाता है मनवाछ्ित सभी ईच्छा करे पुरी ...
बताऊ' किस जबाँ से गुण बताया जा नहीं सकता 1 २ ॥.
अगर धन सपत्ति चाहो या चाहो भ्रौर सुख पाना
निरोगी काया हो निर्भय कोई डर हो नहीं सकता ॥ ३ ॥
लेवो एकात चित्त करके जपो जो मत्र जी चाहे ड
रे भाई वो' कया वस्तु है जो तू पा नहीं सकता ॥। ४ ॥।
नमो जयकद्न जिनेशवर को मेंगन झातम हो ब्रहमचारी .
सभी सिद्ध कार्य होवे कोई भी रूक नहीं सकता ॥ ४ ॥
' '' डे
चाल-(कब्वाली) सखी सावन बाहर श्राई भुलाये जिसका जी चाहे
भ्ररे चेतन तू उठ जल्दी समय ये बीता जाता है. , --
समय बीता हुभ्रा प्यारे नहीं फिर हाथ श्राता है ॥ १ ४
मिला कंसा समय श्रच्छा मचुष्य पर्याय ये पाई
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