जैन भजनावली | Jain Bhajanavali

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Jain Bhajanavali by जयकिशन दास जैन - Jaykishan Das Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रे पहाड़, पत्थर, पृथ्वी, जल मुक्कको किया वायु, भ्रग्ति था बनाया भाग जा ॥ ७ ॥- अब तो जयकदान को जिनेदबर बाणी से । रत्त सम्यर मिल गया तू -भाग जा ॥ ८१ - रैरे व चाल:- (कब्वाली) सखी. सावन बहार आई मुलाये जिसका.जी चाहे श्री भक्तामर का वर्णन करू क्या कर नहीं सकता' लिखू' तारीफ क्या इसकी करू क्या लिख नहीं सकता ॥ १ ॥। ये फलदाता है मनवाछ्ित सभी ईच्छा करे पुरी ... बताऊ' किस जबाँ से गुण बताया जा नहीं सकता 1 २ ॥. अगर धन सपत्ति चाहो या चाहो भ्रौर सुख पाना निरोगी काया हो निर्भय कोई डर हो नहीं सकता ॥ ३ ॥ लेवो एकात चित्त करके जपो जो मत्र जी चाहे ड रे भाई वो' कया वस्तु है जो तू पा नहीं सकता ॥। ४ ॥। नमो जयकद्न जिनेशवर को मेंगन झातम हो ब्रहमचारी . सभी सिद्ध कार्य होवे कोई भी रूक नहीं सकता ॥ ४ ॥ ' '' डे चाल-(कब्वाली) सखी सावन बाहर श्राई भुलाये जिसका जी चाहे भ्ररे चेतन तू उठ जल्दी समय ये बीता जाता है. , -- समय बीता हुभ्रा प्यारे नहीं फिर हाथ श्राता है ॥ १ ४ मिला कंसा समय श्रच्छा मचुष्य पर्याय ये पाई




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