धान के गीत | Ghan Ke Geet

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Ghan Ke Geet by एलीन चांग- Eleen Chang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्श्र जानें के कारण एक लड़की-सी प्रहीत होता था । उसकी झ्ाखें सफेद बोर घूरती हुई-सी थों, जो बीमारी के कारण श्राघी अ्स्ी हों गई थीं शोर उसे ठीक तरह से देखने के लिए सिर को इस प्रकार घुमाना पड़ता था, मानों किसी की झांखें मार रहा हो 1 .... वह आर बड़ी मौसी सूर्यास्त से पूर्व चोऊ गांव पहुंच गये । घपने पोति-पोतियों को साथ लेते गये श्रीर पुत्र दघू को घर की देख-भाल के लिए पीछे छोड़ गये । शादी के मेहमान पहले ही दावत खाने के लिए दँद चुके थे । वर और वध को वीच की एक मेज पर एक टूसरे के साथ सबसे घधिक सम्मान के स्थान पर बैठाया गया था । दोनों ने शपनी-अपनी छाती पर एक या लाल फुल लगा रखा था । खिड़की से श्रस्त होते हुए सूर्य की रद्मियां वमरे में आआ रही थीं । इस रद्मिपथ के दीच बंटी चघ सुलावी श्र से चिद्ति चीनी म्टिटी वी एक एहली-सी नजर झा रही थी । से देसवर एना प्रतीत होता था मंयों उसमें एक श्रावारत्दिवता श्ौर फिर सिरव बा भाव हो । सुवर्णमूल इस परिवार का नया सम्बन्धी था, इसलिए वह दूसरी मेज के सिरे के सम्मान स्थान पर बँठा । बड़े मौसा श्ौर दडट्टी मौनी तीसरी मेज पर ले जाये गये और काफी देर तक नद्ता से समभाने-दुन्यने पर उन्होंने आ्रादर का स्थान ग्रहण करना स्वीकार कर लिया । चार यू इघर-उबर घूम फिर कर खाना परोस रही थीं, घ्वब्य हो वे घर की दरुपएं होंगी । वड़ी नज्ाकत से वड़े मौसा श्रपनी चावल की तथ्तरी की योर देगते श्रौर थोड़ी देर बाद उसमें से चावल उठाकर मुंह में देते । फद रंग सं ५ इस महत्वपूरों श्रदसर के लिहाज से खाना निहायत घटिया या, दिन्दु दूल्हे की मां मेजवानी निभाना खूद जानती थी, इसलिए चह सव झतिथियों के पात्त जाती झ्रार उन्हें बताती कि वया चीज यढ्टिया नी है घोर उनसे इस नरुटि के लिए और कभी उस्त घुटि के लिए माफी मांगी 1 बृद्धावरूम




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