ज्वार भाटा | Jwar - Bhata
श्रेणी : कहानियाँ / Stories
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ज्यार भादा श्श्
जीवन से कही क्रोई मदत्व नदी है । और इसीलिए वह जनादेन को
क तरह से भूल सी गयी है । इसीलिए उसने अपने आचार-
व्यवहार और भावों से यह कभी प्रकट नहीं होने दिया कि जनादेन
भी कोई एक था, जिसे उस ने अपना समझा था, चाथवा जो अब
भी उसका बेसा ही अपना बना हुआ है ।
किन्तु अपरिचित, अप्रत्याशित और अकस्मात ्ाकर उसी
जनादेन ने, कुछ ही क्षणो में, उसके रत्नाकर से भरे पूर्ण जीवन को
श्पने एक ही स्पर्श से इस तरह जो प्रकस्पित कर डाला है, यह
कया है? पूर्शिमा की विचार दृष्टि एकमात्र इसी प्रश्न के समाधान में
लीन है । बार-बार वह सोचती है-मैने तो केवल कहा ही भर था
कि अगर तुम मुझे न सिले तो मेरा मरण निश्चित हैं । मे इसे
निसा नही सकी । विपरीत इसके में यही सोचती हू कि मेरा उस
अवस्था का वह सब सोचना एक भाव-प्रवणुता मात्र थी--अपरि-
पक्त बुद्धि और चेतनाका केवल एक भावात्सक प्रमाद था । सोचती
है यद्दी मेरे लिये आज एक महासत्य है। और अट्राइस वर्षे के
तरुण तपस्वी का यह अविवाहित जीवन, देश-सेवा के युग-युग बन्द-
नीय सहायज्ञ में सका तिल तिलत्रर जल जलकर यह आहुति-
दान ही असत्य और सिथ्या है ।
उन्होंने कहा था-- तुम चाहे अपने ब्रत से विचलित भी हो
जाओ, पर से तो मरणु-पयन्त तुम्हारी प्रतीन्षा' करूंगा ही । सो
मेरा विचलित होना मेरी बहुत बड़ी सफलता है श्र जनार्दन का यह
अविचलित तप-पू्ण जीवन ही उसकी असफलता । तो वह प्रतिज्ञा
जो पूरी नहीं हो सकी, गौरव म.ने अपनी अपूरोता पर ' श्र वह
सकल्प जिसने झपने को आचार का रूप देकर अर्नि-परीक्षा मे
स्वणे की भॉति जाज्वल्यमान कर दिया हो, मिथ्या, तुच्छ और देय
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