विनिमय सिध्दान्त | Vinimay Siddhant
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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जे० के० मेहता -J. K. Mehta
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प्रेमचंद जैन - Premchand Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अंकरण २
वस्तु-विनिमय ओर विनिमय अनुपात
प्रश्न ५--वस्तु-विनिमय की परिभाषा करो; ओर यह स्पष्ट करो कि
सब आर्थिक व्यवहार बस्तु-विनिमय क्यों है ?
उत्तर--वस्तु-विनिमय द्वारा वस्तुओं का अद्ल-बदल होता हे। इसके
लिए विनिमय माध्यम डदुव्य की सहायता नहीं लेनी पड़ती । एक वस्तु
दूसरी वस्तु से बदली जाती है । किसान जुलादे से गेहूँ के बदले में कपड़ा ले
सकता हैं और जुलाहा इस प्रकार प्राप्त किये गये गेहूँ को जूतों से बदल
सकता है । परन्तु झाजकल के व्यवहार में वस्तु-विनिमय बहुत कम होता है |
वस्तुएं द्रव्य की सहायता से खरीदी श्र बेची जाती हैं । आज के युग में
किसान अपनी फसल को सीधा कपड़ों और जूतों से नहीं बदलता । प्रथम चह
फसल बेचकर द्रव्य प्राप्त करता है और फिर इस द्रव्य से इच्छालुसार वस्तु
खरीदता है; इस प्रकार द्रव्य वस्तुओं के लेन-देन में बहुत सहायक है । परन्तु
इतने पर भी द्रव्य केवल विनिमय साध्यम का ही कार्य करता है; अन्तिम रूप
सें तो वस्तु का वस्तु से ही बदला होता है । आज भी किसान फसल को जूता
कपड़ों अथवा अन्य वस्तुओं से बदलता दे; द्रव्य तो केवल विनिमय साध्यस
है । अतएव वस्तु-विनिमय और द्रव्य द्वारा विनिसय में विशेष अन्तर नहीं है ।
तर केवल इतना ही है कि द्रव्य के कारण विनिमय छ़ुविधाएंवंक श्र
तीव्रता से किया जा सकता दै । व्यापार का विकास होता है, और पूंजी
संचय में ्ासानी दोती है परन्तु फिर भी द्रव्य की सहायता द्वारा क्रय-विक्रय
में बस्तु-विनिमय के गुण रहते हैं। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार इसका ज्वलंत
उदाहरण है । एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से विनिमय माध्यम द्वारा व्यापार नहीं
करता | दीर्घ॑ काल में तो निर्यात ही आयात की झअदायगी करती है । सध्य
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