छान्दोग्योपनिषद | Chhandogyopanishad

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Chhandogyopanishad by रामस्वरूप शर्मा - Ramswarup Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(९९) | | विविधुस्तस्मात्तेनो भय शुणोति श्रवणीयं चाश्नवः | | णीयें च पाप्मना दतदू विद्वम ॥ ५ ॥ | | अन्वय और पदाथ--( भय, ह ) इसके अनन्तर ( भरोभम्‌ ) | श्रोन्नोपलक्तित ( उदगीयमू ) प्रणव को ( उपासाब्चाकिरे ) उपासना करते / हुए ( असुरा: ) सुर ( तत, ह ) उसको भी ( पाप्मना ) पापले ( वि- | बिघु: ) वेधतेहुए ( तस्मात्‌ ) तिससे ( तेन ) उम्र द्वारा ( अवसीयम्‌ ) | | च ) सुनने योग्यको मी ( अश्रवर्णायम्‌, च ) न सुननेयोग्यकों मी | | ( उमपयम्‌ ) दोनोको (श्वण्योति ) सुनता है ( हि ) क्योंकि ( एतत्‌ ) | | यह ( पाप्मना ) पापसे ( बिद्भमू ) विद्ध है॥५॥ । | (सायार्थ )-तदनन्तर देवता औओआंते श्रवणेन्द्रियके साथ एकत्वहष्टिसि प्रणबका अश्रप करके उस इन्द्रियकी | | ऋल्पाणक्ारिणी सकक बृत्तियाकों प्रकादित करनेकी | चेछा की, तब असरोंने इस श्रबणेन्द्रिय को भी पापसे | बिद्ध किपा अतएव तथबसे श्रव्णेद्रिय उस पापसे घिद्ध | होकर सननेयोग्य विषयकी समान नस सुननेयोग्य बिषय | को मी सुननेलगा ॥ ५ ॥ दर अथ हू मन उद्गीथमुपासांचक्रिरि तद्धा दासुराः | पाप्मना विविधुस्तस्मात्तेनो भय ४ संकर्पयते संक- | रपनीयं चार्सकरपनीयं च पाप्मना झ्लेतादिद्धमू॥६॥ | अन्घप भौर पदार्थ-( अथ, ह ) शनन्तर ( मन: ) मन ( 1 उपलब्दित ( उद्बीथम्‌ ) प्रयावक्षो ( उपासाचाक्ररे ) उपासना करतहुए | ) ( असुराः ) असुर ( तत, हू ) उसका भी ( पाप्मना ) पाषसे ( बिवि- | | घु. ) वेधत हुए ( तस्मात ) तिसे ( तन ) उसके द्वारा ( सकर्यनीयम्‌ | | च ) सडरप करनेयोग्यकों ( झसझुल्पर्भयम्‌, च ) सकजलप न करनयोग्य- | का भी ( उमयम्‌ ) दोनोकों ( सकुल्पयत ) '्यालाचना करता (हि ) है | क्योंकि ( एतत्‌ ) यह ( पाप्मना ) पाते ( निद्धमू ) विधाहुआआ है £ है पाय 1. अषा-टीका-सहित




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