मानव सन्ततिशास्त्र | Manav Sant Tishastra

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Manav Sant Tishastra by मुंशी हीरालाल (जालोरी )- Munshi Heeralal (Jalori)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रकरण पह़िला ' पस्तुत विषय के जानने की आवश्यकता और भहरव । निधर को आंख उठाकर देखते हैं उधर हो इंख़रोय लेखा, को विचित्रता नज़र आतो है। खषटि को मनोहरता अपूव है। अल २ में ऐप २ अपूव ओर चमत्कारिक दृश्य देखने में आते हैं, कि जिन का बयान करना ब ुत ही कठिन है। प्रत्येक बात में कोई न कोई रहस्य अवश्य गक्षताछो है। प्रत्यक बात मनुष्य के लिये बोघदायक है--प्रत्थेक बात समलुच्य के लिये आनन्दटायक डै--प्रत्येक बात से मनुष्य आन प्राप्त कर सकता है-- प्रत्येक बात बुद्चि को विकसित करने में चमत्कारिक असर रखतो है। जिस बात को मनुष्य सामान्य समब्स कर टाल देता है, धोड़ा बविचादने से, उस में भी कुछ न कुछ अपूवता अवश्य मालम पढ़ती है। इन सबों को देखते इुए यही कहना पड़ता है कि “ ईश्वरोय लोला बढ़ी विधिच है ”। यह विचित्रता भी अपार है। परमात्मा भें इसो लोला वचिचय में अर्थात्‌ इसो लोला वेचिचूय का विस्तार कर के, इसी को परिसोमा में खष्टि को छत्पत्ति को, इसो लिये संसार स्वयम्‌ विचित्र है और उस को एक बात भो विलचिचता से खालो नडीं है । इसी संसार वेचिचूय में - इसो विचिल्रता के समाग रूपी अपार समुद्र में अगसित गुप्त शक्तियां और गुप्त रइस्य मौजुद हैं: अर्थात्‌ संसार इईश्तरोथ मेदों, अमोघ शक्तियों, गुप्त रदस्यों और अगणित विद्यासं का खक्ाना है । मलजुष्य को बुद्धि का पता लगाया जा सकता है, किन्तु इन को थाइ नद्ों मालूम कौ जा सकतो । यों २ मनुष्य को बुद्चि विकसित तो औओद




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