लहू का रंग एक है | Lahu Ka Rang Ek Hai

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Lahu Ka Rang Ek Hai by राजकुमार अनिल - Rajkumar Anil

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तमाथ की कीमत श्शु दमन. भव 2 न मजा यणणयाणाणाा . दर्माजी विनोद दा्माजी विनोद दर्मानों विनोद शर्षानी सुरेन्द्र बिनोद चिनप विनोद लाखो पाए । : पर तुम वचोगे कहां | में फंसूंगा तो बया तुम्हें छोड़ दूंपा £ (चपरासी से) चतों ! ['चपरासो के पोधे-पोछे सुनोल धला जाता हैं ।] : स्कूल में दबदवा कायम करने के लिए मेंने इससे दोस्तो गांठी जरूर थी लेकिन देखता हैं, यह दोस्ती काफी महूगी पड़े रही है ! [इसी समय दार्मानो फिर प्रवेश करते हैं 1] : भरे विनोद, तुम ! यहां झ्रमी सुनील सड़ा था, कहीं गया ? : प्रिंसिपल याहव से मिलने । : क्यों ? : उन्होंने बुलवाया था । : किसेलिए : मुफे मालूम नहीं, सर ! : में जाकर देखता हूं । [धर्माजों चले जाते हैं। सुरेन्द्र भोर विजय प्रदेश करते हैं 1] : करवा दी न वेचारे को छलटे पस्तरे से हजामत ! : मैं मला छसकी क्या हजामत कराऊंगा 1 मुझे तो खुद श्रपनी जान के लाले पड़े हैं । : सुनील के साथ जो मी रहा है। उसका यहीं हाल हु्रा है। साल मर तक ऐसी ही हरकतें करता रहता है श्र श्राखिरी समय मास्टरों को डरा-धमकाकर खुद ती पास हो जाता है, पर जो उसके साथ रहता है, उस बेचारे को रोना पड़ता है 1 2 मैं हो इतने ही में भर पाया, मैया !. (कान छुरूर)




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