लहू का रंग एक है | Lahu Ka Rang Ek Hai
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तमाथ की कीमत श्शु
दमन. भव 2 न मजा यणणयाणाणाा
.
दर्माजी
विनोद
दा्माजी
विनोद
दर्मानों
विनोद
शर्षानी
सुरेन्द्र
बिनोद
चिनप
विनोद
लाखो पाए ।
: पर तुम वचोगे कहां | में फंसूंगा तो बया तुम्हें
छोड़ दूंपा £ (चपरासी से) चतों !
['चपरासो के पोधे-पोछे सुनोल धला जाता हैं ।]
: स्कूल में दबदवा कायम करने के लिए मेंने इससे
दोस्तो गांठी जरूर थी लेकिन देखता हैं, यह दोस्ती
काफी महूगी पड़े रही है !
[इसी समय दार्मानो फिर प्रवेश करते हैं 1]
: भरे विनोद, तुम ! यहां झ्रमी सुनील सड़ा था, कहीं
गया ?
: प्रिंसिपल याहव से मिलने ।
: क्यों ?
: उन्होंने बुलवाया था ।
: किसेलिए
: मुफे मालूम नहीं, सर !
: में जाकर देखता हूं ।
[धर्माजों चले जाते हैं। सुरेन्द्र भोर विजय प्रदेश
करते हैं 1]
: करवा दी न वेचारे को छलटे पस्तरे से हजामत !
: मैं मला छसकी क्या हजामत कराऊंगा 1 मुझे तो
खुद श्रपनी जान के लाले पड़े हैं ।
: सुनील के साथ जो मी रहा है। उसका यहीं हाल
हु्रा है। साल मर तक ऐसी ही हरकतें करता रहता
है श्र श्राखिरी समय मास्टरों को डरा-धमकाकर
खुद ती पास हो जाता है, पर जो उसके साथ रहता
है, उस बेचारे को रोना पड़ता है 1
2 मैं हो इतने ही में भर पाया, मैया !. (कान छुरूर)
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