हिंदी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास | Hindi Jain Sahitya Ka Sankshipt Itihas

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Hindi Jain Sahitya Ka Sankshipt Itihas by कामताप्रसाद जैन - Kamtaprasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ ) दी । पाठक यह जान कर प्रसन्न होंगे कि उपयुक्त प्रतियोगिता में यह निभन्ध परीक्षकों द्वारा मान्य हुश्रा श्रौर इसके उपलन्त में लेखक को रजत पदक का पुरस्कार दिया गया । रजिस्ट्रार महोदय ने इसकी मूल पांडुलिपि भी हमको मेज देने की कृपा की; क्योंकि विद्याभवन कशाज़ के श्रमाव के कारण इसे शीघ्र प्रकाशित करने में श्रसमर्थ था । श्न्त में हम श्रीमान्‌ डॉ० वासुदेवशरण जी श्रग्रवाल एम, ए.., डी, लिट्, के विशेष रूप से उपकृत हैं जिन्होंने इसकी भूमिका लिख देने की कृपा की है। साथ ही हम श्री पं० महेन्द्रकुमार जी न्यायाचाय, व्यवस्थापक, भारतीय ज्ञानपीठ काशी को नहीं भुला सकते । प्रस्तुत पुस्तक उन्दीं के प्रयास से इतनी जल्दी प्रकाश में श्रा रही है । एतदर्थ हम उनके श्रत्यन्त कृतश हैं । इस श्रवसर पर मास्टर उप्रसेन जी, ( मंत्री, श्र० भा० दि० जैन परिषद्‌ परीक्षा बोर्ड, दिल्ली ) भी हमें याद श्रा रहे हैं । उन्होंने प्रस्तुत पुस्तक को परिपद-परीक्षालय के पाठ्यक्रम में स्थान देकर इसका प्रचार सहज साध्य किया है । भलीगंज ( एटा ), विनीत-- ३ नबस्वर, १९४ ३ कामता प्रसाद जैन




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