हिन्दीभाषा का इतिहास | Hindi Bhasha Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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असाधारण हैं किंतु इस में देवनागरी लिपि श्और अंकों का इतिहास है, हिंदी - भाषा से इसका संबंध नहीं है । कामंताप्रसाद गुरु का हिंदी व्याकरण ( सं० १९७७ ) . साहित्यिक खड़ीबोली के वर्शनात्मक व्याकरण की इृष्टि से. अत्यंत . . सराहनीय है किंत इस में व्याकरण के रूपों का इतिहास संकेत रूप में कंहीं कहीं नाम मात्र को ही दियां गया है । इस व्याकरण का यह उददश्य भी नहीं है ।* लेखक. का जजमाषा व्याकरण (. १९०९ ई०) हिंदी में साहित्यिक . न्रजमाषा का प्रथम विस्तृत विवेचन है. किंत इस का उद्देश्य भी ऐतिहासिक .तथां तलनार्मक सामग्री देना नहीं है । दुनीचंदं का लिखां हुआ पंजाबी और हिंदी का, भाषा विज्ञान ( १९२५. _ई० ) शीषक प्रेथ तुलनात्मक क्ेत्र में प्रवेश कराता है किंत॑ मौलिक होते हुए : भी यह कृति बहुत पूण नहीं है ।..१९ २४. में श्यामसुंदर दास ने भाषा विज्ञान नामक. अंध लिखा था जिस के: हिंदी भाषा का विकास शीर्षक अंतिम अध्याय : «में पहले-पहल आधुनिक सामग्री के आधार पर . भारतीय आर्यभाषाओं का . संक्षिप्त परिचय तथा हिंदी: भाषा के मुख्य-मुख्य रूपों का. संक्षिप्त इतिहास देने . का प्रयास किया. गया था । यह अध्याय इसी शीर्षक से अलग पुस्तकाकार है तथा कुछ संशोधित रूप मैं हिंदी भाषा त्रौर साहित्य अंथ के. पूर्वाद्ध . में भी. मिलता. है.।. हिंदी भाषा का यह विवेचन. हिंदी में अपने. ढंग का पहला है किंत इस में बड़ी भारी त्रटि यह है कि वणुनात्मक अंश तथा. ऐतिहासिक “व्याकरण -संबंधी.. अंश एक दूसरे से. मिल गए हैं तथा ऐतिहासिक व्याकरण संबंधी सामग्री अत्यंत संक्षिप है । यह कृति हिंदी भाषा के विकास पर पुस्तकाकार विस्तृत निबंध मात्र है । यहां पर श्यामसुंदर दास तथा हट पदमनारायण आचार्य के 'माषारहत्य भाग ₹. (२९.३९. इु०) का उल्लेख कर कि देना भीं उचित होगा । अंथ के इस प्रथम मांगे में केवल '्वनि का ब्रिषय विस्तार के साथ. दिया गया है । प्राचीन भारतीय आंचार्यों के मतों का यत्र तत्र समावेश की विशेषता है । लेखक के हिंदीमाषा के इतिहास के प्रथम. संरकरण




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