विज्ञान | Vigyan

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Vigyan  by संतप्रसाद टंडन - Santprasad Tandan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ विज्ञान, श्र स्टूबर, १९४५ पृथ्वी. सूर्यमंडलकी सदस्या है । सूर्य परिवारमें बुध श्रौर चन्द्को छोड़कर बाकी सभी ज्योतिष्कोंके वातावरण है । मगर परथ्वीका वातावरण उन सभीसे निराला है । शुक्र श्र दूसरे श्रहोंगें वातावरण है, किन्तु उसमें श्रोघजन ( ए्उप्र््ठ6ा। ) प्रथ्वीकी श्ापेक्षा बहुत कम है । कुल ग्रहोंका वातावरण श्रपारदशंक है इसलिये हम दूरदशक यंत्रोंकी मददसे भी उनके भीतरी मेदको' नहीं जान पाये हैं। सूर्यपरिवारमें मंगल ही एक ऐसा अह है जिसपर वातावरण देते हुए भी दम उसका भू-प्ृष्ठ देख सकते हैं। श्रगर पथ्वीको मंगल परसे देखा जाय तो जेसा दम : चहस्पतिकों देखते हैं बैसी नज़र झ्रायेगी । किन्तु शुक्र पर से दूरदर्शक द्वारा या. चन्द्र परसे कोरी श्रँखोंसे पृथ्वी को देखा जाय तों प्रथ्वीका श्राघ्ा भाग जादलोंसे प्रिंरा हु मालूम पढ़ेगा। खास करके इन बादलोंका विपुषत्ृत्त प्रदेशमेंका जमघ्रट बहुत चमकीला श्रौर ऋषतु-परिवर्तन- के साथ-साथ सरकता हुआ मालूम पढ़ेगा श्रौर इस जम- घटके दोनों श्रोर घिना बादलके श्याम प्रदेश नजर शआएँगे। इनसे भी दूर, थोडे-थोड़े बादलोंवाला श्रू व तक पहुँचता हु्रा प्रदेश दिखाई पड़ेगा । चन्द्र या शुक्र परसे दूरबीनकी सहायतासे देखने पर भी पश्वीक्रे निवासियों की बहुत ही कम हलचल दिखाई पड़ेगी हाँ, बड़े-बड़े नगर, ज्वालामुखी पहाड़ श्रौर जंगल ज़रूर नजर श्रारयँगे । प्रथ्वीके चारों श्रोर कम्बल के रूपमें हमारा वायुमंडल है। यह वायू मंडल २०० मील तक ऊँचे फैला डुश्रा है । हम उसमें ३४ मील तक ही प्रवेश पा सके हैं । फिर भी उसकी श्रनेक बातोंकी जानकारी हमें प्राप्त हुई दै.। थ्वी- का वातावरण एक प्रकारसे हमारा मित्र है तो दूसरे दंग से शत्रु भी । वातावरणुसे ही प्रथ्वी परके प्राशियोंका जीवन टिक सका है । अगर हवा न हे तो जीवन श्रसंभा-. वित है । वातावरणुसे एक श्रौर फायदा यदद है कि सूर्यमेंसे निकलनेवाली. श्रनेक मृत्यु किरणोंको वह पृथ्वी तक पहुँचने नहीं देता है श्रौर यों प्थ्वीके जीवों को कुछ ॒ श्राराम पहुँचता है । किन्तु इसी वातावरणके कारण दम दिनमें तारे नहीं देख सकते । इसके श्रलावा तारोंकी प्रकाश-किरणोंके यह वातावरण मोड देता है । श्रौर नाविकॉंकी तकलीफ बढ़ा देता है। हमारा यह [ सांग ६२, अनुभव है कि दिन भर में ग्रहशकी गयी. गरमीको, प्रथ्वी का बायुमंडल, रोत्रिके समय अकाशमें नहीं जाने देता है श्रौर हमें ठंदकसे बचाकर मित्रका कार्य करता है ; किन्तु इसी गरमी संग्रदके कारण प्रथ्वीकी सतहके संप्कमें तनेवाले वायुके स्तरोंमें ऐसी भयंकर गति उत्पन्न होती है कि उसके कारण बढ़ा कष्ट होता है। श्राकाशमें परे न चन्द्रसे प्रथ्वी कैसी दिखती है । घूमती श्रनेक उल्कायें प्रथ्वी पर झा ट्वव्ती है उनमेंसे अधिकांश ऐएथ्वीके वायुमंडलके साथ रगड़ खाकर जल उठती हैं । यों वातावस्णके कारण हम उल्कापातकी मारसे बच जाते हैं । किन्ठु इसी रगढके कारण वाता- वरणुमें भारी बिजलीकी शक्ति पैदा हो जाती है जो पृथ्वी के जीवोंको कभी-कभी मृत्युका आ्ास्वाद « चखाती रहती है। इतना होने पर भी इसी वातावरणुके कारण दम प्रकषतिके श्रनेक अनुपम दृश्य--मेरुज्योति, इंद्रधलुष, नीला काश, उषा, संघध्याका प्रकाश, टिमटिमाते रंग-




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