संत तुकाराम | Sant Tukaram

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महाराष्ट्र भक्तिघम [ ६. एकनाथ की माता का नाम रुक्मिणी था । बचपन म॑ ही एकनाथ के माता-पिता को काल हो जाने के कारण उसका पालन-पोषण उस के ' दादा चक्रपास्थि ने ही किया । इस की बुद्धि बड़ी तीव्र थी । विद्याम्यास पूरा करने पर यह देवगिरि गया । यहाँ के सूबेदार जनाद॑न पंत प्रसिद्ध मगद्धक्त थे । मुसलमानों की सेवा में रह कर भी जिन सर्पुरुषों ने ्पने धर्म तथा भमाषाकी रक्षा मली-माँति की थी, उनमें से ही जनादन पंत एक थे । दो मालिकों की सेवा एक ही सेवक को करना बड़ा . कठिन है । पर जनार्दन पंत अपने सुसलमान मालिक तथा सर्वेशः दत्तात्रेय दोनों की सेवा बड़ी चतुरता से करते थे । इन्होंने ज्ञाने श्वरों ग्रंथ का अध्ययन बड़े परिश्रम से किया था । एक शिष्य ने इन से उपदेश लिया । शिष्य की झसाधारण बुद्धि देख जनादंन पंत ने एकनाथ को मराठी में अंथ-रचना करने की श्राज्ञा दो। एकनाथ मराठी श्रौर फ़ारसी दोनों भाषाओं में निपण थे । इनके. पद्य-अंथों में... फ़ारसी के झनेक शब्द पाए जाते हैं । इन की अंथ-रचना में श्रोमद्भा- गवत के एकादश स्कंघ पर लिखी हुई टीका बहुत प्रसिद्ध है । इस टीका -लेखन का पैठण में आरंभ हुआ आर तीथ॑-यात्रा करते-करते हो 'एकनाथ ने इस का बहुत-सा भाग लिख कर टीका काशोपुरों में पूरो की । यह ग्रंथ पूरा होते ही इनकी प्रठिद्धि काशी के पाडिता मं खूक हुई श्रौर तब से आ्राज तक महाराष्ट्र भाषा में यह अंथ बहुत माना जाता है। इस समय एकनाथ की आयु केवल २४. वर्ष की थी । इन्होंने बहुत से अंथ लिखे । इन के ग्रंथों में अद्धेत-ज्ञान ्औौर मगवद्धक्तिं का बड़ा सुंदर मिलाप देखने में श्राता है । इन का आचरण भी बड़ा शुद्ध श्रौर पवित्र था । भरूतदया तो इन के नस-नस में भरी थी । इन्हों ने अतिशूद्रों को भी - श्रपनाया और पिंतृ-श्राद्ध के लिए बनाई रसोई से लुधित श्रंत्यजों को भी ज्ाह्मणों के पहले जिमाया था । यह एक बार त्रालंदी गए और वहाँ पर महीनों तक अपनी दरिकथा से लोगों को ईशगुण सुनाते रहे । श्रीज्ञानेश्वर मददाराज के समाधि की बुरी हालत




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