उद्भ्रांत प्रेम | Udbhrant Prem

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चंद्रशेखर मुखोपाध्याय - Chandrashekhar Mukhopadhyay

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द्वारकानाथ मैच - Dwarkanath Maich

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वासुदेव आचार्य - Vasudev Acharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बच सुख 1 ११ जता पल लक पतारालपततजपनाली पक पर लजर सजा वतन नाग नाना न ललन तन नलाडा छो नंहों है, इस जगत्तंसाइमिं दूतना दुःख कों है-- फुसममें कोट क्यों है -चन्दरपें काका वो दै-पुण्यमें काबाश- सूरत्ति बों है-नरकका पथ कुशुमाग्त त ब्यों सू--सौन्दय चित कों छोता है-सलुप्य हंदयमें मेराश्श वो है संतुष्यर्क ससाटमि रागशाक दयों ै--प्रयय्मि थिर्क्ष बचों सै-शाशा थे अविश्वास क्यों है-मजुण खाथंपर दंगों दी एकाका दुःख टूसरा को नहीं सप्तभता-ुःखप्रकाशणी मापा को नहीं कू--करीमेंमें जो बात जखतो रहती है वर सुषसे बायीं नहीं' निकल सक्षतो-खेंह भागंवाएशसयण करों है जो शिसकों प्यार वारता है बच उसे खा ब्ों देता है ? यदि सो देता ै तो जिस दिन खीता है, उस दिन सर बायों नहीं झाता ! यह जड़ जगत कारों है ? सहीकों देडसें यह सुख-दुःख-समा- कुल, यह खेह-बात्सरय-परायण, यह शान्ति-सौन्द्य्य -प्रविद्वला प्रिय चुदय कारों है? इसोसे वाउंता ज, यदि कोई विधाता सो बच बड़ा निर्दूर है | वच किसी जोवकों शभम-कामना 'वच्ी' करता, जोवकौ जणाई देख नषीं' सकता ; वह: दूसरे _ दी दुःखकों समभ नहीं सकता, वह सियीका लिहाज नही' . करता, बह पांव पकड़कर रीमे परमो नही' सानता--वच् बढ़ा 'निद्यं है। व बरबस खिलाता है; अपने चा प्ोदक लिये हाथी को सामने, घुसाला है भ्ीर सात सींकार वरनेपर', भी नहीं /' झागता- “नहीं खेल गा” कच्चनेप्रर भी नहीं कोजता। कहें 'पकटपएएपिपएपिएएएफ पा के शत्रझषसी वाष्पर्यी है । ., , ... ' , . कू * कूल मैं लनननणणणण




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