उद्भ्रांत प्रेम | Udbhrant Prem
लेखक :
चंद्रशेखर मुखोपाध्याय - Chandrashekhar Mukhopadhyay,
द्वारकानाथ मैच - Dwarkanath Maich,
वासुदेव आचार्य - Vasudev Acharya
द्वारकानाथ मैच - Dwarkanath Maich,
वासुदेव आचार्य - Vasudev Acharya
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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चंद्रशेखर मुखोपाध्याय - Chandrashekhar Mukhopadhyay
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द्वारकानाथ मैच - Dwarkanath Maich
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वासुदेव आचार्य - Vasudev Acharya
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बच सुख 1 ११
जता पल लक पतारालपततजपनाली पक पर लजर सजा वतन नाग नाना न ललन तन नलाडा
छो नंहों है, इस जगत्तंसाइमिं दूतना दुःख कों है--
फुसममें कोट क्यों है -चन्दरपें काका वो दै-पुण्यमें काबाश-
सूरत्ति बों है-नरकका पथ कुशुमाग्त त ब्यों सू--सौन्दय
चित कों छोता है-सलुप्य हंदयमें मेराश्श वो है संतुष्यर्क
ससाटमि रागशाक दयों ै--प्रयय्मि थिर्क्ष बचों सै-शाशा
थे अविश्वास क्यों है-मजुण खाथंपर दंगों दी एकाका दुःख
टूसरा को नहीं सप्तभता-ुःखप्रकाशणी मापा को नहीं
कू--करीमेंमें जो बात जखतो रहती है वर सुषसे बायीं नहीं'
निकल सक्षतो-खेंह भागंवाएशसयण करों है जो शिसकों
प्यार वारता है बच उसे खा ब्ों देता है ? यदि सो देता
ै तो जिस दिन खीता है, उस दिन सर बायों नहीं झाता !
यह जड़ जगत कारों है ? सहीकों देडसें यह सुख-दुःख-समा-
कुल, यह खेह-बात्सरय-परायण, यह शान्ति-सौन्द्य्य -प्रविद्वला
प्रिय चुदय कारों है? इसोसे वाउंता ज, यदि कोई विधाता
सो बच बड़ा निर्दूर है | वच किसी जोवकों शभम-कामना
'वच्ी' करता, जोवकौ जणाई देख नषीं' सकता ; वह: दूसरे
_ दी दुःखकों समभ नहीं सकता, वह सियीका लिहाज नही'
. करता, बह पांव पकड़कर रीमे परमो नही' सानता--वच् बढ़ा
'निद्यं है। व बरबस खिलाता है; अपने चा प्ोदक लिये हाथी
को सामने, घुसाला है भ्ीर सात सींकार वरनेपर', भी नहीं
/' झागता- “नहीं खेल गा” कच्चनेप्रर भी नहीं कोजता। कहें
'पकटपएएपिपएपिएएएफ पा
के शत्रझषसी वाष्पर्यी है । ., , ... ' , . कू * कूल मैं
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