समस्थानसूत्र षष्ठ स्कन्द | Samasthan Sutra Shasth Skandh

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Samasthan Sutra Shasth Skandh by मनोहर जी वर्णी - Manohar Ji Varniमहावीरप्रसाद जैन - Mahavirprasad Jain

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महावीरप्रसाद जैन - Mahavirprasad Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२६ वां झध्याय और परिणामते पैदा होने वाले मिले रूप परिणाम ला यिकर्परिंसामिक- सान्िपार्तिकजीवभाव कहलाते हैं । जैसे चीणुकपाय वाला भव्यत्व रूप परिणास । (१०) क्ायोपशसि रुपारिणामिक सालिपातिक भाव:--फर्मोके कायोपशाम तथा परिणामते पैदा होने वाले मिले रूप परिणाम इसके श्मन्तर्गत श्राते हैं । जसे श्रवधिज्ञानी जीव । (१९) ्रौदयिक-झौ पशमि क-क्षायिक साननिपातिक जीवभावः-ा कर्मोके उदय उपशम और क्षय उत्पन्न होने बाले जीवके. मिले रूप परिणाम इस नाम वाले दोते हैं । जेसे मनुष्य उपशान्तमोद क्षायिक सम्यग्टघ्टि रूप परिणाम । (१२) दयिक-ौपशमिक-कायो पशसिक सा निपातिक जीव- भाव--कर्मोके उदय उपशम श्र ्षयोपशमसे उत्पन्न होने वाले जीव के मिले हुए परिणामों को इस नाम से पुकारते हैं । जैसे मनुष्य उपशा- न्तमानकपषायी वाग्योगी रूप परिणाम । (१३) ओदयिक-छौपशमिक-पारिशामिक सानिपारतिक जीव भावः--अकर्मोंके उद्य उपशप ओर परिणामसे उत्पन्न होनेबाले जीवके मिले हुए परिणाम इस कोटिमे श्राते हैं ! जेसे मनुष्य उपशान्तक्रोधी भव्यत्व रूप परिणाम । (१४) आदयिकक्ायिक्तायो पशामि कसानिपातिक जीवभावः”- ऐसे भाव जो कर्मोके उदय, क्षय श्यौर क्षयोपशमसे उत्पन्न होते हैं तथा- मिले हुए द्वोते हैं वे भाव इसके अन्तगंत आते हैं । जैसे मनुष्य क्षीशुक- चायी श्रुतज्ञानी । (१४) चोदयिकक्षायिकपारियामिकसालिपातिक जीवसाव:-- फर्मों के उदय क्षय श्और परिणामके निमित्तसे होने वाले सिलेहुए भाव इस नामसे पुकारे जाते हैं । लेसे मनुष्य क्षीणद््शनमोदी जीघत्व रूप मिश्रपरिणाम । (१६ दयिकक्त।योपशमि कपारिशामिकसालनिपातिक जीब-




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