रेडिओ | Redio

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Redio by आर० आर० खाडिलकर - R. R. Khadilkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रेडियो डर (१ इंच २'५४ सेन्टीमीटर ) से ९०००० मीटर तक हो सकती है। इनमें से कुछ छह्दरों का ज्ञान हमें अपनी इन्द्रियों से साघारण रूप से हो जाता है । गरमी भोर प्रकाश की किरणों का अनुभव दम अपनों त्वचा ओर आँखों से करते हैं । ईथर में सूय से जो ढहरें चढती हैं वे इमारे पास आकर हमारो तचा और आँखों के इलेक्ट्रोनों को हिछा देती हैं। इस तरदद हमने देखा कि इठेक्ट्रोन की गति के परिवतंन से ईथर में छहरें दौढ़ती हैं और ईथर की छदरों से इउेक्ट्रोन को गति में परिवतन दो जाता है। याद रखना चाहिये कि सूय से प्रथ्वो तक आने में ईधर की उद्दरों को ९,३०,००,००० मीछ का रास्ता ते करना पढ़ता है । किन्तु फिर भी दम में से कुछ आदमों ढू छगने से मर जाते हैं । यह विश्व इतना बढ़ा है कि इंच-फुट में इसका नाप देना संभव नहीं है । वैज्ञानिकों ने इसके ठिए एक नया नाप बनाया है । प्रकाश को किरणें ईथर को उहरें दो दोतो हैं और इनकी गति भी अन्य ईथर की लहरों को तरह १,८६,००० मीठ प्रति सेकेण्ड रदती है । इस हिसाब से ? साल में प्रकाश किरण ५८,८०, ००,००,००,००० मीछ रास्ता ते करेगी । वैज्ञानिकों ने इस ढंबाई का नाम पकाश-वष रख दिया है । अपने इस विश्व में सब जगह ईथर भरा है और भंदाजा छगाया गया है कि विश्व का व्यास १,६८,००,००,००,००० प्रकाश वर्ष है और इथर की लहरों की गति से उसकी परिधि का चक्कर छगाने में ५,७०,८५,७०,००, ००० से कुछ अधिक वर्ष छगेंगे । विद्यत-चुम्बकीय लहरें पाठकों ने समझ छिया होगा कि पदाथ के किसी परमाणु को अगए हम देख सकते तो हमें एडेक्ट्रोन, प्रोटोन और ईथर दिखाई देता । एढेक्ट्रोन ओर प्रोटोन में आकषण रहता है। जब ये एक दूसरे से दूर रहते हैं तो उक्त आकपण जिस क्षेत्र में फेठता है उसे विद्युत क्षेत्र कदते हैं। जिस पदाथ में विद्युत उदरो बहती




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