प्राचीन राजस्थानी गीत भाग - 4 | Prachin Rajasthani Geet Bhag - 4

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Prachin Rajasthani Geet Bhag - 4  by मोहन सिंह -Mohan Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ७, मद्दाराणा श्री भरूपालसिंद उदार एवं शाम्त मूति थे । उनके वन में त्याग एवं उदारता के सुन्दर भाव रस प्लाबित दो दठे हैं 1! कवियों द्वारा रची गई इन प्रशंसात्मक कविशाओं को दम तोत के ( करामाती, कृत्रिम ) घोड़े एवं कागजी नौका नहीं कद्द सकते । वीरता, घीरता घीरता, उदारता, स्वाभिमान # एवं राजसी रूप की सुथरी हुई विधि निर्मित टढ़ दीवारों पर इन्होंने काव्य-चित्र छंकिन किये हैं । कहावत है कि “श्ावे- चित्र अनूप, भींत प्रमाण भेरिया ।” और “'अभित्तिय चित्र कदापि न होय |” श्रथात्‌ जैसी दिवाल होती है, वैसा चित्र ख़िंच जाता है । ऊबढ़ खाबड़ दिवाल पर चित्र सुन्दर नहीं बनता | श्रस्तु, यही कारण है कि मयांदा पालक -1णाों के चित्र-चित्रण में कर्बियों की लेखनी “सो ने में सुगन्ध' का काम कर गई । रचनाएं कैसी हैं ? उसका रसास्वरादन तो झनु- * उठ भूपाल रा हाथ ऑ्ाज |”? ' भूप-भूपाल ने भूलजे कि भती' दुनी में श्रवतरयों दीन ब्न्पू ! त्याग कर महा बड़भाग वर्सिया सुरंग, हिंद रे सारथधी ज्ञान सिंन्घू ॥” टिप्परणी:--# यह तो भी की बात है | स्वर्गीय महारागा श्री मसुपालसिह बड़े स्वाभिमानी थे । जब रियासते' खत्म नहीं हुई थी, तब १६ रियासतों के राजा एवं उनके प्रतिनिधि उदयपुर श्राये छोर यह निश्चय करने लगे. कि यदि हमारे राज्य बने रह जाय, तो हमें पाकिस्तान में मिल जाना चाहिय । उस समय महाराणा भूपालर्सिंह तेश में आ्राकर तरोले, कि मेवाड़, पाकिस्तान में कभी नहीं मिलेगा । यह हमशा विजातियों के विरुद्ध रहा है । हमारा राज्य रहे या न रहे; परन्तु मैं पाकिस्तान में मिल कर श्रपने पवित्र गजबंश को कभी कलंकित नहीं करूंगा | उक्त घटना, महाराणाश्रों के स्वाभिमान मं कया श्रपयप्त प्रमाण है ? जिन्होंने कि सवंस्व गँवा कर भी स्वाभिमा को ठेस तक नहीं पहुँचने दी ।




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