कंवलपूजा | Kanval Pooja
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कंवद पूजा श्र
दर पद भी मद हनन के ७ ४ कै ग
*हां, गुलाब ! जाएँ क्यू त्यारछों परस सू' म्है बावठी ब्हे जादू ? म्यारठी
कांचदी ककमभ्वन्करी री
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* नी छलोलद प्र हा, म्यारठी श्रोढणी ?”
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हैं, काली किशी री देखी प्रौई साथ्छा म्रंड़ी ? बैठी री घम्ब देख्यो ?*”
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जाणँ क्यू” गुलाब ने लायी के वा लुगाई नी मडद भौई, दी रैं सरीर में
अेक भऋरणाटी, सरीर में श्रेक सुगन, नैखां मे मस्ती, परस में चिणगारी भींई । वा,
महारांशी मै काठी पकडर वी सु कुस्तो करण री तेवड़ली । महारांगी मुखमल रा
सरम शिददू मार्थ लुटण लागी। गुलाब री पांघड़िया बिलरगी । भ्रचाणुचक भेर
बाज़ण सू' रांमत में घान्दी पड़ग्यी । संग डावड़ियां दड़बडावती भ्राय पुठी । ढील
चघाडी महाराणी सरम सू' भाख्यों मीचली ।
(४)
घरां में घुसियोड़ा गला, दिन ऊगतां ई झा दिसावां में निकद्ग्या । रात
री ठस्पोष्टी सुन, बंत री गेडियां रे सारे पाछी चालणा लागी ! डॉंगर, दुवार्यां
हस्दा चांग छोड, गठियां सू बजार मर बजार सू रोई रैं मारग चराई भर पेट
भराई री जुगाइ में जुडग्या | बॉमण, कोठी लटकाय, पेटियो पकावण री ध्रुन में
भद्दू कग्यो | घट्टियां सू' घमीड़ा खाय, घरवाछ्ठियां, पिणयारियाँ री पलटन बशाई ।
बेर कपर घाली धघड़ा री घरणाट, ढेकलो री ढोठाई ने फटका रण सागर । बाशियी,
बोवशी री दिखिया सू' बन्धियोड़ौ, कलेवी साथ घात ल्पायी । बाठद, बजार में
पपत जमाप बिकशा रो बारी बंघश सागी । ेरां रा डोढ़ीदार, भमलवांणी कर,
इचाछो रौ रंग पाकों कियी । प्रिस्थो रं घरम सू धापियोड़ी, मड़कल मुकनी;
माडोणी मन ने मार, बजार रो नाड़ पकड़, भावों रै मंदरजाछ में भंवग्यों । बाने
बेठोड़ी बनड़ी मूदां छुंटवाय, दर्पण माय दौरी व्देण सागी । रूपाठो, मदर्गल में
भाकिरियों दा शियुकारों सू सर्योड़ा कानां, पिचडियोड़ा सालों मर खजी धॉछियोँ
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