कंवलपूजा | Kanval Pooja

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कंवद पूजा श्र दर पद भी मद हनन के ७ ४ कै ग *हां, गुलाब ! जाएँ क्यू त्यारछों परस सू' म्है बावठी ब्हे जादू ? म्यारठी कांचदी ककमभ्वन्करी री *कसदू ?”” * नी छलोलद प्र हा, म्यारठी श्रोढणी ?” *डील ऊपर ? *नी, बौत तपत प्रौई, डील उधाड़ो ई सवावे ।”' “महाराणी सा” शहर साथदों ती*** ५” हैं, काली किशी री देखी प्रौई साथ्छा म्रंड़ी ? बैठी री घम्ब देख्यो ?*” का हाँ, देख, से की देख” । जाणँ क्यू” गुलाब ने लायी के वा लुगाई नी मडद भौई, दी रैं सरीर में अेक भऋरणाटी, सरीर में श्रेक सुगन, नैखां मे मस्ती, परस में चिणगारी भींई । वा, महारांशी मै काठी पकडर वी सु कुस्तो करण री तेवड़ली । महारांगी मुखमल रा सरम शिददू मार्थ लुटण लागी। गुलाब री पांघड़िया बिलरगी । भ्रचाणुचक भेर बाज़ण सू' रांमत में घान्दी पड़ग्यी । संग डावड़ियां दड़बडावती भ्राय पुठी । ढील चघाडी महाराणी सरम सू' भाख्यों मीचली । (४) घरां में घुसियोड़ा गला, दिन ऊगतां ई झा दिसावां में निकद्ग्या । रात री ठस्पोष्टी सुन, बंत री गेडियां रे सारे पाछी चालणा लागी ! डॉंगर, दुवार्‌यां हस्दा चांग छोड, गठियां सू बजार मर बजार सू रोई रैं मारग चराई भर पेट भराई री जुगाइ में जुडग्या | बॉमण, कोठी लटकाय, पेटियो पकावण री ध्रुन में भद्दू कग्यो | घट्टियां सू' घमीड़ा खाय, घरवाछ्ठियां, पिणयारियाँ री पलटन बशाई । बेर कपर घाली धघड़ा री घरणाट, ढेकलो री ढोठाई ने फटका रण सागर । बाशियी, बोवशी री दिखिया सू' बन्धियोड़ौ, कलेवी साथ घात ल्पायी । बाठद, बजार में पपत जमाप बिकशा रो बारी बंघश सागी । ेरां रा डोढ़ीदार, भमलवांणी कर, इचाछो रौ रंग पाकों कियी । प्रिस्थो रं घरम सू धापियोड़ी, मड़कल मुकनी; माडोणी मन ने मार, बजार रो नाड़ पकड़, भावों रै मंदरजाछ में भंवग्यों । बाने बेठोड़ी बनड़ी मूदां छुंटवाय, दर्पण माय दौरी व्देण सागी । रूपाठो, मदर्गल में भाकिरियों दा शियुकारों सू सर्योड़ा कानां, पिचडियोड़ा सालों मर खजी धॉछियोँ अीद




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