कालिदास के काव्य में ध्वनितत्व | Kalidas Ke Kavya Men Dhwanitatv

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Kalidas Ke Kavya Men Dhwanitatv by मजुला जायसवाल - Majula Jayasaval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(द आचार्य मम्मट ने मी इसी वात्पय का उत्तम काव्य ध्वनि के विवेचन के प्रसज्ध में विशद रूप से निरूपित किया है। है हे 7. ! हप इंस प्रकार्र वैयाकरणो से प्रेरणा ग्रहण कर आपदवधन ने काव्य की एक नयी दिशा दी और उस दिशा का नाम “ध्वनिवाद' रखा । उनके अनुसार ध्वनि की परिभाषा इस प्रकार है-- जहाँ वाच्य-अथ अपने (स्वरूप) को तथा वाथक शब्द अपन वाच्य अप को गोण (अप्रधान) बनाकर, उस प्रठीयमात अथवों व्यग्म अब की प्रधान रूप से व्यजना करते हैं उस वाव्य-विशेष को ध्वनि कहते हैं ।* ३१. बस्तुत्त आनन्दवधन ने मतानुसार ध्वनि एक विशेष प्रवपर के काय को ही कहते हैं--'जहाँ शन्द और अथ अपने को अप्रधान बनाकर अयम अर्थ (व्यंग्य अर्थ) की व्यूखना करते हूँ ।* अपने सम्पूर्ण ,ग्रथ ,में ध्वृनिकार, ने “ध्वनि शद का प्रयोग बस केवल इसी अर्थ व्यग्य,प्रधान काव्यविशेष) में किया है। इस तथ्य की पुष्टि हेतु उनके हो थे वचन प्रमाण हैं, यया-- उयग्य प्राघाये हिं ध्वनि ' ॥। ध्व०, १11 ३ प्‌ सव्निसशित प्रकार काव्यस्प ध्पजित सोश्यमु' | ध्व० है। दे ननु ध्वनि का्थ्यविशेष इत्पुक्ततू ॥ ध्य० है व्पडुग्योध्या ललनालावष्यप्रास्थी च. प्रतिपादितस्प प्राथाये ध्वनिरित्यु- क्तमु 1 व्यडग्यायस्प प्राघाये. ध्वनिसशितकाब्यप्रकार गुणभावे तु. गुणीमूत- श्यडग्यता ।* इत्यादि । थ के का 2 है 'दु्ेपाकरणों प्रधानमुतरफो£रूपव्यापव्यजकस्य शब्दस्प ध्वनिरिति व्यवहार छत 1 ततस्त मतानुसारिमिरन्यरपि थर्भावितवाच्यव्यग्यट्यजनक्षमस्थ शब्दाय पुगलस्प ।1” 1 इउ त पा 2१1 कार प्र० पुर रह ते कितु इस विथय को लोचनकार आाचाय अभिनव गुप्त ने कुछ अधिक विस्तार दिया हैं । उहोने “्वनि' का प्रयोग'पाच प्रकार के अयों।(ध्यजक शब्द, व्यजक जय, व्यग्याय व्यजना व्यापार तथा इन सबसे युक्त काव्य) मे किया है । इन पाँचो सो की पुष्टि वे' लिए *वावयपदोयकार भठु हरि” की कारिकाओं को उद्धुत क्या है । यद्यपि सपने स्वथ भी यह स्वोकार किया है कि मादददधन मे तो अपने प्र्प मे केवल काव्य को ही ध्वनि कहा है । मम र यत्राय शब्दों वा तमथधमुपसजनीकृतस्वायों । व्पदक्त काव्यविशिय सःध्यनिरितिसूरिसिं कथित 00 ध्य०' १११३ है प्व० तृतीय उद्योत पुष्ड बट कः कि थे ध्व० शुतोय उद्योत, प्ुण देह हल




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