काव्य में उदात्त तत्त्व | Kavya Mein Udatt Tatva
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
129
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
डॉ. नगेन्द्र - Dr.Nagendra
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पं नेमिचंद्र जैन - Pt. Nemichandra Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भुमिका ७
साथ कहा जाता है : जैसे मृत्यु के लिए नियत मार्ग का प्रयोग श्रादि ।
लोगिनुस का मत है कि पर्यायोक्ति का प्रयोग संयम के साथ विवेकपूर्वक करना
चाहिए झन्यथा वह एकदम झभावशुत्य हो जाती है श्रौर एक प्रकार का
खोखलापन एवं वार्विस्तार शेष रह जाता है ।*
इन अ्लंकारों के अतिरिक्त १३. रूपक श्ौर १४. भ्तिदययोक्ति का भी
उदास दैली के निर्माण में महत्वपूर्ण योग रहता है । कुछ विद्वानों ने रूपकों
की संख्या को दो-तीन तक ही सीमित करने की व्यदस्था दी है, परन्तु लॉगिनुस
उनसे सहमत नहीं हैं। रूपकों की सूंखला उदात झविग-प्रवाह को व्यक्त
करते में प्राय: अत्यंत्त सफल रहती है। किन्तु यहाँ भी प्रभाग विवेक ही हैं।
शतिशयोक्ति के विषय में श्रौर भी सतकंता की श्रावस्यकता है क्योंकि उसका
असयत प्रयोग उपहास्य बन जाता हैं । यह अविश्ययोकि वास्तव में भारतीय
कांव्यलास्व में वर्णित 'ऊहा' के सिकट है--इसकी सार्थकता तभी है जब प्रमाता
को इसके श्रस्तित्व का संदेह तक न हो, जब तिशय स्वाभाविक ही प्रतीत हो ।
उदात्त की सुष्टि में सद्टायक प्रायः थे ही म्रलंकार हैं । ये श्रलंकार पुथक्
रूप से तो उपयोगी होते ही हैं--इनकी संदष्टि की उपयोगिता श्रौर भी अधिक *
होती है क्योंकि विस्तार और प्राचयं की सष्टि कर श्रनेक अलंकारों का
सम्मिलित प्रयोग उदात्त की खष्टि में प्रत्यक्ष योगदान करता है ।
उत्क्ष्ट भाषा :
उदात्त दौली का दूसरा प्रमुख तत्व है उत्कृष्ट भाषा । लॉपिनुस ने विचार
अर पद-बिस्यास को एक दुसरे के भ्ाधित माना है ।* अतएव स्वभावतः
उदात्त की झभिव्यक्ति का माध्यम उत्कृष्ट या गरिमामयी साषा ही हो सकती
है। भाषा की गरिमा का मुल ब्राघार है शब्द-सोन्दर्य, जिसका अर्थ है 'उपयुक्त *
तौर प्रभावक' गब्द-प्रयोग । सुन्दर बाब्द ही वास्तव में विचार को विशेष प्रकार
का श्रालोक प्रदान करते हैं ।'5 भर उन्हीं के द्वारा “प्रत्यक्ष रूप में किसी रघना
में सुन्दरतम मुरतियों की भाँति भव्यता, सौल्द्यं, मादव, गरिमा, ओज और
शक्ति तथा भ्रन्य श्रेष्ठ गुणों का आविर्भाव होता है श्ौर मृत्तप्राय बस्तुएं
जीवन्त हो उठती हैं ।”* किन्तु गरिसामयी भाषा का उपयोग सर्वेत्र नहीं करता
१, काव्य में उदातत तत्व, पृष्ठ ६० ।
२. वही; इस्ठ ६०1
३. वही, पृष्ठ € १ ।
४ वही प्रष्ठ ६2 ।
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