कहानी का रचना विधान | Kahani Ka Rachana vidhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हल एक विषय, तथ्य, अनुभूति श्रौर पदार्थ के विषय में कलाकार की एकान्तिक निष्ठा ही कहानी को सजीवता प्रदान करती है । सम्पूर्ण कहानी के श्न्य सभी तत्त्व कथानक, संवाद, चारित्य, देशकाल इत्यादि जो कुछ भी उसमें रहेगा वह सब साधन रूप में रहेगा । साध्य रूप में केवल एक ही प्रतिपाद्य होगा; वही संपूर्ण सर्जना का केन्द्रविन्दु होगा । इस आ्राघार पर कहानीकार से पूछा जा सकता है कि उसकी रचना का क्या केन्द्र-विन्दु है? साथ ही श्रध्येता ओर पाठक से प्रइन किया जा सकता है कि किसी कहानी का क्या मूलभाव है; यदि इनमें से कोई वर्ग एक से श्रधघिक की श्रोर बढ़े तो समझ लेना चाहिए कि कहानी में दोष है, शभ्रथवा इस विषय की 'रचना-प्रक्रिया का उसे बोध नहीं है । कहानी में यों तो यथास्थान विभिन्न तत्व सप्निविष्ट रहते हैं, परंतु उनकी संयुक्त गति किसी एक इष्ट के स्थापन में लगी रहती है। यदि भाव की व्यंजना ही इष्ट है, तो पात्र उसी प्रकार के भाव में डूबा दिखाई पड़ेगा । उस भाव की सिद्धि के लिए, पात्र के चरित्र की जो वृत्ति सबसे श्रधिक श्रनुकूल होगी, उसकी गति- विधि का सामान्य, परिचय देकर परिस्थितियों को वह इस प्रकार सजा देने की चेष्टा करेगा कि उस भाव का एक उद्दीप्त स्वरूप प्रेरणा प्रदान करने लगे । सारा वातावरण उसी वुत्ति विशेष की सजीवता को श्रंकित करने में लगा दिखाई पड़ेगा । संवाद भी ऐंसे ही होंगे कि उसी के स्वरूप का बोध कराएँ श्रथवा उसी को श्रधिका- घिक स्फुटित करने में योग दें । पात्र उन संबादों का योग लेकर, या तो अपने श्रांतरिक चिंतन को प्रकट करेगा भ्रथवा क्रिया के वेग से उस भाव की श्रोर बढ़ेगा । इस प्रकार पात्र की क्रियाशीलता, वातावरण की सजावट उस भाव या वृत्ति को इस रूप में सामने उभाड़ कर रख देगा कि पाठक का हृदय झनझना उठे, अथवा माधुयं में पग उठे । सारी कहानी को पढ़कर उसके हृदय पर उसी का प्रभाव स्थापित्त हो जाय । सच्ची कहानी वही है जिसके श्रंत में श्राकर पाठक




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