राजनीति प्रवेशिका | Rajneeti Pravasika

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Rajneeti Pravasika by परिपूर्नानंद वर्म्मा - Paripurnanand Varmmaहैरल्ड जे० लास्की - Harold J. Laski

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हैरल्ड जे० लास्की - Harold J. Laski

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शक राजनीति प्रवेशिका क्रियाशीरू माँगों में समानता होगी ।'उस समय राज्य का संकत्प किसी एक वर्गके लिए पक्षपातपूर्ण नहीं होगा । यदि राज्य मांगों को पूरा करने वाल्दि संस्था है तो उसके शासन में जनता के अधिकारों में जितनी समानता होगी, उतनी ही. सम्पूर्णता के साथ वह जनसमूह की इच्छा पूरी करू सकेगा । कम से कम, इतिहास का ऐसा ही अनुभव हू । अभिजातवंत्रीय राज्य बहुत समय तक के लिए केवल इसलिए चल सके कि उनके अधीन जो समुदाय अधिकार-हीन था, उसमें से बहुत कम लोगों को राज्य की नींव को हिला देने की अपनी दछाक्ति का ज्ञान था और इस तुच्छ संख्या के कारण ही वे प्रभाव-शून्य थे । और, यू अभि- जाततंत्रीय राज्य समाप्त इसलिए हुए कि वस्तु के उत्पादन की र। ति में ऐसा परिवर्तन हो गया जिससे नयी योजना में, उत्पादन के काम में जिनका महत्वपूर्ण भाग था, वे राज्य के परमादेशों की सोमा को अपने लिए लाभदायक रूप दिला सकने में समर्थ हुए । ' उर्पलिंखित वर्णन के बाद हम यह निर्णय कर सकते हूं कि राज्य को शुद्ध कानूनी व्यवस्था कहने का क्या तात्पयं हैं । इस दृष्टि से वैधानिक क्षेत्र के बाहर इसके औचित्य के विषय में हम कुछ नहीं जानते । जिस समय जिस राज्य में जो शक्तियाँ काम करती हैं उन्हीं के अनुसार उस राज्य की तात्कालिक स्थिति बन जाती हैं और और इन्हीं के समानान्तर उनके कानूनी आदेश उस समय बनते और शक्तियों में परिवर्तन के साथ बदलते रहते हें । उसके कानून वैष इसलिए हैं कि किसी निश्चित समय में वे लागू किए जा सकते हू। एक बार उन कानूनों को उनके. वास्तविक आधार के अलावा . अन्य कारणों से वध साबित करने की चेष्टा की जाय तो हमको कानन के क्षेत्र से निकल कर अन्य क्षेत्रों की शरण लेनी पड़ेगी । कांग्रस (संयुक्त राज्य अमेरिका की व्यवस्थापक महासभा) या:




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