कथक नृत्य | Kathak Nritya

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Kathak Nritya by प्रकाश नारायण - Prakash narayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दितीयं अध्याय अभिनय तथा नत्य अंगों के कलात्मक और सुरुचिपूर्ण संचालन द्वारा मनोवां- क्षित भावों के झभिव्यक्तिकरण को झमिनय या नास्य कहा जाता है । झभिनय भी एक प्रकार की भाषा है। बास्तव में भाषा दो प्रकार की होती है--श्रव्णों की भाषा और नयनों की भाषा । नृत्य में दोनों प्रकार की भाषाओं का उपयोग होता है । साहित्य में केवल श्रवण की साषा से काम लिया जाता है । अभिनय की भाषा यदयपि मानव सभ्यता के समान दो प्राचीन है किन्तु केबल भारत में ही इसका वैज्ञानिक और कलात्मक रूप से पूर्ण विकास हुआ है । झाज से दो हजार बर्ष पूर्व भी भारत में झभिनय की विशिष्ट शास्त्रीय अणाली का परिष्कृत रूप विद्यमान था । दुशरूपककार घनन्जय ने कहा है-- प्रवस्थानुकति नाव्यम्‌ रूप॑ हश्यमू योच्यते । रूपकं तत्समारोपाद ददावैव रसाश्रयसु ।। अवस्था विशेष की अनुककृति को नाव्य” कहते हैं । इसका दाश्रय लेकर प्रदर्शित होने वाले नाव्य के दस मेद होते हैं । नाव्य में संगीत तथा भाव प्रदशन का समन्वय रहता है और इसके झन्तगंत चारों प्रकार के झभिनय का विधान है । ' अभिनय का दूसरा झंग 'नृत्त' है । इसमें केवल सौन्दर्य के लिए ंगों का संचालन झौर भाव प्रदर्शन होता है । किसी २




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