उदयनारायण तिवारी व्यक्तित्व और कृतित्व | Uday Narayan Tiwari Vyaktitwa Aur Krititwa

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Uday Narayan Tiwari Vyaktitwa Aur Krititwa by डॉ शिवगोपाल मिश्र - Dr. Shiv Gopal Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जीवन वृत्त [से] इसे तिवारी जी का सौभाग्य ही समझना होगा कि दारागज़ का निवास उनके लिए लाभप्रद रहा। वही पर प0 श्रीनारायण चतुवेदी (भड़या जी) जी का आवास था। उनसे परिंय का लाभ यह रहा कि उनके कारण इण्डियग प्रेस के पटल दावू ने तिवारी जी को धर्मतलला स्ट्रीट कलकत्ते में इण्डियन प्रस मे रहन की व्यवस्था कर दी। 1941 के बाद भी तिवारी जी कलकत्ते गते जातें गहरे 1 इस तरह ते कलकते में 1939 से 1943 तक रहे! इस तीच वे वर्निया जाकर अपन परिवार वालो से मिलते रहे। तब तक उनके 4 कन्याएँ तथा 2 पुत्र जन्म ले चूके थे।' 'डॉ0 तिवारी कै पास से प्राल रिकार्डों से पता चलता हैं कि 28 चार्च 1942 को कलकत्ता में भाषा विज्ञान के सह्पपाठियों ने उन्हें विदाई दी और एक मानपत्र भी दिया था। दारागऊ में लगता हैं कि 1925 मे जब तिवारी ज्ली दी ए में थ, तो ये बहादुरगज से दारागज मुहलते चले आय। एक रास्मरण में उन्होंने लिखा है कि 1925 मे वे द्वारका पसाद चनुर्वेथी के घर के सासनें रहते थे। यहां वे 1928 तक रहे। यह घर उसी पतली गली म था जा छोटी काठी के पीछे से होकर प0 श्रीनागयण चतुर्वेदी जी की वशिया को छूती हुई जाती है।* चहीं पर 1926 मे तिवारी जी का परिचय भगवती चरण वर्मा स हुआ। तत्र तिवारी जी दारागज की साहित्य गाप्ठी के मडट्ी ये और भगवती चरण वर्मा उसमें आते रहते थे। यह साहित्य गाप्ठी 1926 में प0 धीधर पाठक के सुझाव पर स्थापित की गई थी। 1928 में जब श्रीनारायण चतुर्वेदी इग्लैंड से वापस आये ता साहित्य गाष्टी ने उनका स्वागत समारोह आयोजित किंया। यद्यपि तिवारी जी श्रीनारायण जी को 924 में दिल्‍ली में देख चुके थे ओर बाद मे उनके घर के सामने रह रहे थे किन्दु उनसे असली पर्चिय 1930 मे हुआ। एसा लगता है कि तिवारी जी वी ए , एम ए में पढ़ते समय दारागज़ से विश्वविद्यालय तक 1बध रोड से) पैदल जाते रहे होगे क्याकि उन्ह साइकिल चलानी नहीं आती थी। इसीतिए बाद मे भी लगातार या तो पैदल या रिक्यो पर आम-जाते रहे। एम ए करने के बाद जब 1929 वे दारागंज हाई स्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए तो त बेनीमाधो मदिर्‌ के पास किसी पंडे के मकान म॑ किराये पर रहने लगे (सरयू प्रसाद पाप्डेय स मिनी सूचना के असुसार)। बीच-बीत म॑ं गाँव जाते रहे क्योकि वें अपना परिवार नहीं ला पाये थे। घह भी सुनने मे आया कि उनके पिता घी तथा अन्य दस्तुएँ समय-समय पर वलिया से यहाँ लाते रहे। जब परिवार लाने का मन वनाया ना उन्ह दारागज़ छोड़ कर अलापी वाग आना पडा। डारागज उन दिनों साहित्यिक केन्द्र था।' 1... कन्याओं के नाम-राजकिशोरी, रामकुमारी तथा लीतावती एवं ठलादती। पुत्रों के नाम ' ल्क्ष्मनाराणण तथा राजनारास्ण | शारन में प्रकाष्गित लेख 'हिन्दी के पाण राजर्पि टडन' भांग 1 में डा. तिवारी ने लिखा हैं कि 1926 में मैं हारागज म रहने तगा शा! 3... दारागज में उनफ साहित्यिक रहते थे जिनये प0 द्वारका प्रसाद चतुर्वदी प८ जगवाथ एराएट णुफ्ल, पा. लक्ष्मीधर वाजषियी, पए गिरिजा दत्त शुक्ल गिरीश, प0 उयाशकंर दुदे पा सिद्धनाध दीित पा विद्या भास्कर शुक्तत, ठाफुर पोनाथ सिंह, पए भगयनों प्रसाद ढाजपंठी, श्री शम्भू दयाल सक्सेना प0 गणेश पाण्ड्य आदि फे नाम उत्लौखनीय हैं एक पास य. सिवपी का स्लि बन उुके ले त्वॉकि दे इति स्वडित्य गॉच्चण में प्रात से कप




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