महादेव प्रणीत अद्भुतदर्पण नाटक का समीक्षात्मक अध्ययन | Mahadev Pranit Adbhutdarpanam Natak Ka Sameekshatmak Adhyayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नल औपतस्विनि का मत प्राप्त होता है । यहां मात्र इतना ज्ञात होता है कि थे याज्ञचल्क्य के समकालीन उपतस्विनू अधि के पुत्र थे ।. इनके अतिरिक्त जैमिनीय उपनिधद बाइुमण है उ, 7.3, 28 के दो स्थानों पर हराम क्ाहेय वैयाघ्ाथ” का उल्लेख है * इस चिधय में स्वामी करपात्री जी का रुथन है कि - निरचिशिक राम के ही किन्हीं गुणों के संयोग ते श्रन्य व्यक्तियों में मी राम शब्द का प्रयोग सम्भव हो सकता है अतः सम्भतः इन राम नामक व्यक्तियों के नाम भी श्रीराम के ग्णों से प्रभावित होकर हीं रखे गये हो । सीता सशरवादाकाथिताक चैदिक ताहिच्त्य मैं सर्वधा भिन्न दो सीताओ का उल्लेख प्राप्त होता है । इनमें से एक कुषि की अधि्दठात्री देवी सीता हैं तथा दूसरी हैं सीता सावित्री। सीता तादित्री का बुत्तान्त कृष्ण युर्वेद के तैत्त्तिरीय ब्राइमण मैं प्राप्त होता है यहां तीत्ता प्रजापत्ति अर्थात सुर्य की पुवी कही गई हैं । ये सीता तोम हाजा से प्रेम करती हैं तथा पिता के द्ारा दिवे गये स्थागर अर्थात मख्लेयन के दादा सोम राजा का प्रेम पाप्त करती हैँ ॥ इस प्रकरण के सन्दर्भ में श्री बुल्के यह तम्जावना' व्यक्त करते हैं कि अनुवुया द्ारा सीता को दिये गये अगराग का बुत्तान्त झा उपाछ्यान के स्थागर वुत्तान्त ते प्रभावित हो सकता है *। कृषि की अध्थिठात्री देवी के स्व में सीता का उल्लेख झग्वेद से लेकर सम्पूर्ण वैदिक साहित्य मैं अनेक स्थलों पर मिलता है । अस्वेद की सीता चिध्यक | यजवेंद की “तौरायुबन्ति” प्रार्थना कीं. अध्क्िश तामगी में साम्य है । अल गा भ ज ऋ ऋ ऋ ऊ ऊ ऊ ऊ कक अ अ कु कु अ . अ कु. . अ. . .... न रामाफा मींमासा पु मठ




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