ताण्डय महाब्राह्मण का समीक्षात्मक अध्ययन | Tanday Mhabhrahan Ka Samichattamk Adhyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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10 शुगर्भ सम्बन्धी वैदिक तथ्य - कि भुगमभ सम्अन्धी अनेक घटनाओं थे भी वेदों के काल निनध्ा रण में सहायता मिलती है । उस युग में आयोँ के या सम्बन्धी कार्य प्राय: सनक नर्दी के किनारे ही सम्पन्न हुआ करते थे 1 +अग्वेद में एक स्थान पर प्रसंग आया है जिसमें कहा गया है पक सरस्कती नदी ऊंचे पगोर श्गों से निकल कर मं गा दि समुद्र में गिरती हे | राजस्थान में जहाँ आज थार का मरुस्थल हे, वहाँ पहले कभी समुद्र की लहरें पीहलीरे ले रहा था और इसी समुद्र में सररवर्त। और शुघृष्द्रि नीदयां हमालय से वनिकलकर आकर [गरती थी । लेकिन भयंकर भूकम्प एवं भुभौीषितिक पाररवर्तनों के कारण जहाँ समुद्र और नोदयाँ थी वहाँ मरुस्थल अन गया | ताण्ड्य महा. ज्रादमण |25/10/60 से स्पष्ट हे लि सरस्वती समुद्र तक पहुंचने फा पूरा प्रयास करत थी ,लोकन मरुस्थल की लगातार वृ्ि के कारण उसे अपनी जीवन लीला समाप्त करनी पडी । आयों के मूल निवास स्थान सप्त त्सिन्ध प्रदेश के चारों तरफ समुद्र होने का पत्ता चलता हे । +ंग्वेद के दो मन्त्रोँ 2 में चार समुद्रों का 'ोनदेंश है । |-.. एका चेतव सरस्वती नर्दी नाम रधर्यती गीरस्य आ समुद्राव । ऋग्वेद ह7//95/2] 2-.. राय: समुद्राश्चतुरो8 स्मभ्य॑ सोमाकिवत: । आपपस्य सहाश्त्रण: ।। | अग्वेद १८5८6 |




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