विवेक के रंग | Vivek Ke Rang
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
44 MB
कुल पष्ठ :
445
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देवीशंकर अवस्थी - Devishankar Avasthi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बावजूद गान्धीज़ी भौर शुक्लजीके विचार रवीन्द्रके प्रति ( तथा पाइ्चात्य
प्रभावोंके प्रति ) बहुत-कुछ समानता रखते हैं ।
पुराने सिद्धान्तोंकी युगानुकूल व्याख्याका एक अत्यस्त विशिष्ट उदाहरण
साघारणोकरणकी चर्चा है। संस्कृत काव्यशास्त्रमें. साधारणीकरणका
विवाद ऐसा प्रमुख प्रदन नहीं है कि तमाम रस-सिद्धान्तना प्रतीक बन
जाये । संस्कृत-काव्य-परम्पराम ( या प्राकृत-अपभंशमम भी ) साधारणी-
करणका प्रदन मुख्य था भी नहीं । उस युगमें कवि और रसिककी बौद्धिक
भूमि लगभग समान थी अतः सम्प्रषणकी कठिनाइयाँ नहीं थीं । परन्तु
धीरे-धीरे शिक्षाके प्रसार भौर ज्ञान-विज्ञांनोंकी विशेषज्ञताके साथ-साथ
यह भूमिका बदलों है । साथ ही ब्रजसे खड़ी बोलीमें माध्यमका जो बदलाव
होता है, वह भी सम्प्रषणके लिए समस्याएँ उत्पन्न करता है। पश्चिमी
विचारधाराओं, पश्चिमी साहित्यों आदिके सम्पर्कसे जो काव्य-दुष्टिका
बदलाव हुआ, नये काव्यरूपोंका आविर्भाव हुआ, काव्य-घिषयोंका फेलाब
हुआ, उन सबने मिलकर सम्प्रपणकी समस्याकों काफ़ी जटिल बनाया ।
मुझे याद है कि छायावादकी एक परिभाषा, उसका मज़ाक़ उड़ाते हुए,
यह भी रखी गयी थी कि जो समझमें न आवे वह ही छायावाद । पर यह
केवल मज़ाक नहीं था--इसके साथ लगी सचाई थी कि. छायावादी
कांव्यका एक बड़ा हिस्सा दुरूद और अस्पष्ट था तथा पाठकों तक उसके
सम्प्रेषणमें कठिनाई होती थी । ऐसी स्थितिमें रस-सिद्धान्तकी बर्थ करते
हुए 'साघारणीकरण' की ओर अत्यधिक ध्यान देना वस्तुत: अपने सम-
कालीन साहित्यपर ही ध्यान देना था या उस साहित्यके परिदुश्यमें पुराने
रस-सिद्धान्तकों रखनेकी चेष्टा थी । यह भव्य है कि 'आलम्बनत्व धर्स'-
के जिस साधारणीकरणकी बात शुक्लजीने कही, बहू सीधे राष्ट्रीय संग्राम
की. सामाजिक प्रतिबद्धतासे सम्भूत थी--यानी कि सुजनात्मक स्तरपर जो
प्रतिबद्धता प्रमचन्दके साहित्यकों जन्म दे रही थी वचह्दी शुक्लजी के साधारणी-
करणकों भी । पर इसे रोमैण्टिक काव्यशास्त्रकी आत्मपरक निष्टाके लिए,
घ. विवेकके रंग
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