गोरखपुर जनपद का पुरातत्त्व | Gorakhapur Janapad Ka Puratattv

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Gorakhapur Janapad Ka Puratattv by राजेश्वर शाही - Rajeshvar Shahi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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क्षेत्र का सामरिक महत्त्व बढ़ जाता है। इस क्षेत्र में निवास करने वाली जनता का नजदीकी सम्पर्क नेपाल देश से, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक एवं अन्य कारणों से लम्बे समय से चले आ रहे हैं। गोरखपुर मंडल की भूमि का ढलान प्रायः उत्तर से दक्षिण की ओर है। इस क्षेत्र से होकर प्रवाहित होने वाली मुख्य नदियाँ, अचिरावती अर्थात्‌ राप्ती (234 किलोमीटर), सरयू (77 किलोमीटर), रोहिणी (109 किलोमीटर), आमी (77 किलोमीटर) तथा कूआनों (3 किलोमीटर) है, जो जल निकासी व सिंचाई का मुख्य स्रोत है। इनके अतिरिक्त गोर्रा एवं बरही नदियों का प्रवाह भी जनपद में है। गोरखपुर राप्ती नदी के तट पर स्थित है। इसके दक्षिणी सीमा पर घाघरा नदी पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होती है। उत्तरी भू-भाग की तुलना में दक्षिण में छोटे-छोटे नालों की संख्या अधिक है। 1700 एकड़ क्षेत्रफल में फैली विस्तृत नैसर्गिक झील रामगढ़ताल गोरखपुर शहर में प्राकृतिक रूप से बारहों मास जल प्लावित रहता है। बखिरा झील बस्ती जनपद में अवस्थित है | गोरखपुर क्षेत्र की समुद्र तल से ऊँचाई 185 मीटर है। वर्षा ऋतु में यहाँ के नदी-नाले विकराल रूप धारण कर लेते है जिससे पर्याप्त कृषि सम्पदा और जन-धन की हानि होती है। इसमें नेपाल देश की नदियों का भी कहर होता है। बाढ़ आने से यहाँ की भूमि की गुणवत्ता में परिवर्तन होता रहता है जिससे कृषि उत्पादन प्रभावित होता रहता है| जिले में दो प्रकार की भूमि की बनावट पायी जाती है। जिले के उत्तरी भाग में मिट्टी दोमट है परन्तु कुछ अंश चिकनी मिद्टी का भी है, जो धान और गेहूँ के लिये उपयुक्त है। इस भाग में जंगल कौडिया, कैम्पियरगंज, धानी, भटहट, पिपराइच एवं चरगाँवा विकास खण्ड आते हैं। जिले के दक्षिणी भाग में सहज नवाँ, पाली, पिपरौली, खजनी, बाँस गाँव, गगहा, कौड़ीराम, बड़हलगंज, गोला उरूवा, सरदार नगर, ब्रह्मपुर तथा बेलघाट आदि विकास खण्ड है| वर्ष 1989 में महराजगंज जिला घोषित हुआ जो पहले गोरखपुर का ही एक भाग था। अधिकांश वन का क्षेत्र नये जिले में चला गया परन्तु फिर भी कुछ क्षेत्र कैम्पियरगंज, चरगाँवा तथा खोरबार विकास खण्डों में सुरक्षित रहा । कुसुम्ही वन क्षेत्र का एक बड़ा भाग इस जिले में आज भी मौजूद है। इसमें इमारती लकड़ी, साखू. शीशम, सागौन, असनाकरफुस, बाँस आदि का बाहुल्य है। इसके अतिरिक्त नहरों एवं सड़कों के किनारे गाँव-समाज, संस्थाओं एवं निजी भूमि पर वन प्राप्त होते हैं। लगभग 22190 हेक्टेयर क्षेत्रफल में वन है। जिले में प्रमुख खनिज की उपलब्धता नहीं है। नदियों का भी क्षेत्र सीमित है। उनकी तलहटी से बालू निकालने का कार्य होता है, जिसका उपयोग भवन निर्माण में अधिक किया जाता है। इसी प्रकार मिट्टी मे




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