साहित्य सुषमा | Saahitya Sushhamaa

Saahitya Sushhamaa by एक रिटायर्ड प्रोफेसर - A Retired Professor

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्र] विद्यापति माधव हम परिणाम निराशा । तुदहं जग तारया दीन दयामय झतए तोहार बिसवासा । आध जनम हम नींदे गमाझल जरा शिशु कत दिन गेला । निधुबन रमनी रस रैँग मातल तोहें भजब कोन बेला । कत चतुरानन मरि मरि जाएत न तुझ थझादि झवसाना | तोदे जनमि पुनि तोहे समाझोत सागर लहरि समाना । भनए विद्यापति सेस शमन भय तुझ बिनु गति नहिं झारा । दि अनादिक नाथ कहाश्नोसि अब तारन भार तोहारा । ( २९ ) जय जय भेरवि असुर भयावनि पशुपति भाविनि माया । सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि अलनलुगति गति तुझ पाया । वासर रेनि शवासन सोमित चरन चन्द्रमनि. चूड़ा । कतडउक देत्य मारि मुँह मेलल कतउ उगिल केल कूड़ा । सामर वरन नयन 'अनुरंजित जलद योग फुल कोका | कट कट बविकट 'छोठ फुट पॉडरि लिघुर फेन उठ फोका | घन घन घनय धघुघुर कत बाजय हन दहन कर तुझ काता । विद्यापति कबि तुझ पद सेवक पुत्र विसरु जनु माता । ( है ) . कनक भूधर शिखर वासिनि, चन्द्रिका 'चय चारु द्ासिनि, द्सन कोटि विकास, वकिम तुलित 'चन्द्रकले । ही क्रद्ध सुर रिपु बल निपातिनि, महिष शुम्भ निशुम्भ घातिनि,




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