चरित्र निर्माण के नैतिक पथ भाग - 1 | Charitra Nirman Ke Naitik Path Bhag - 1
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
186
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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सो हम पा भागा” 1! सर्द प्यक्ति था हरदाव होता प्र राय है। यह
रिसी भी परिर्पिति सा पामता घपड चर बसे भर सहावस रा गर सरता है
प्रौर हार जीत मे सह एक समास रहेगा ।
हर परम वा भपना घाभरगध भारत होता है। मसहारमा ईसा मा पहांद पर
दिया हुमा उपदेग तथा रस पागाएं (1८ ए०प्रशाशाएताट्ता5) मे मुष्य गा
उपान में पिये धानरणग सम्बधी दिशा है । नययाप बुद्ध था. (के 0८ है। 420
एज) मठ महाराज का दस पम, जनिया के धम मे दसलसण सुगवमाएा मै
10 नीति निरेशर सिद्धाए यह सब लरित्र उम्थास मै लिये हैं थे
'सम्पयूदशप शाप घरिजाति मोस साग-- तिस्वाथ सूप ) सम्यगहशय पान
भौर चरित्र दर सीना का योग ही सास सांग की प्राप्ति ना उपाय है। चरिय
ड्वारा ही मानव लिया फिप्रही बन कर पदिएत्ति मार्गी था सर है पीर हस
प्रसपर वह इत्रतीकिएग परिदीपिक दोना सुख को प्राप्त वर सरता है । चिप
मे प्रतेगत समर स्मों में प्रति सहिप्पुगा बसपघानदां, बाउगपन से लगर
शृद्धावग्था तक मा समस्त जीवन थे उसके ाय मलाप, व्यायहारिव जीवन से
मर्म्बा पा विशिष्ट गुग्गा का पावन जग देश भत्ति व उसके प्रति गौरवष्ूशा
भावना, स्यवहार गुशसता रमिनटारी कमा, स्वभाव मे सतुसा, सत्याचरग,
पमा की पाय दी, भठुरासत, सम्भा रण, परिध्यमसीजता, नावात्मर एकता का विएं
सतत प्रयास, स्वास्थ्य रा, धाथित सहिप्युमा म्राप्याह्मिग व मानसिग उनति
के लिए साधना का प्रम्थास भाटि है ।
यद्यपि चरित्र वयनाने से शौर नो मोर सतिक गुर्य स्पृहरगीय हैं सधापि
इप गुगा का विशेष सहव है। ये सब गुर झम्दयास से प्राप्त हो सात हैं।
बान्यावस्था घरिषर निमागा व लिए उपयुक्त समय है । इस समय जो सदस्यास बने
जानि हैं व सारी उम्र बम देने हैं। हमार महापुरुप जमे स्वनामवय गोपान डप्ण
गोखले, साजपतराय,वायगगाधर निलर, महा मा गाँधी घाट सदापुरुपा से सत्य
बोलने के सरपार यातकपन से ही. वन गये थे । ऐसे ही सम्पार प्रादमी को बडा व
चरिशयान बनते हैं । सारत कर भविय्य सारत के सबदुवर समाज है चरिकवात
बनने पर हो निमर है। चरि्रवान पुरुष ही रथ वा उननति का पथ दिखा सफत्ता है 1
नवनागरणा छू क सवता है और देश के पागरि वे सुधारने से समध हो सकता है।
घरिवयान पुश्प ही रैश वे गौरव हैं । सरिय्रहीन मतुप्य देश के बल हैं
ज पथाहि मलिनवस्वर्यज्र त श्राप विश्यन
एवं चलित ब्रत्त्तु दत्ततप न रक्षति !
जिस प्रकार मत बपड़े वाला सुप्य हर स्थान पर बेठरर बपड़ें विगाडता
* है उसी प्रकार चरिमटीय व्यरति भी नि प्रतिहित ब्पो चेरिय सो विगाइता है ।
7 _ एाए
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