कहानीकार जैनेन्द्र | Kahanikar Jainendra
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जप
है। डा० गुलाव राय के विचारों से छोटी बहानी एव स्वेत 'दूण रचना है जिसम
एक हो प्रयाव को भग्रमर दे रते वाली पघटनाओ अथवा पाता वा बिन्नण होता है
जपशत्रर प्रसाद ने सोदय वी एक झलत या चिज्रण ही वहानी वा उद्देश्य बताया
है। इंताचद जोशी मा यहें विचार है वि बहानी वे मूल भावा कई सम्द थे हृदय
स होना चाहिए शिक्षा ब्ति को जागरित वरन से नहीं । उसमे वामिनी सी कसनी+
यता और समुद्र बी गम्मी रता होनी चाहिए, पुरूद बी दाता और पहाड़ की बडारता
नहीं । बह सत्तात्पद हनी चाहिए छायहमक नदी । जागी जी वा यह भी विचार
है शि जीवन का चक्क नाना परिस्यितिया मे सपय में सीधा चलना रहता
है। इस सुवहत रूप को किसी विशंघ परिस्थिति वी स्वाभावित गति वह प्रदशन
ही वहानी दे ।
नरेश मेहता ने बद्दानी म क्या तत्व दे साथ ही साय अभिश्यक्ति पक्ष पर
भी विशेष बल दिया हैं। उनती घारणा है वि कहानी अभिव्यक्रित होती है, घटना
मात्र नहीं । आज वी कहानी फामूला या सोट्श्य अदानी बला स आयें बढ़ चुकी
है। पाय माहेप सुनने मे आता है कि व्यक्तिवादिता ने बुण्ठा को जम रिया
फ्लस्वस्प कहानी मिफ शैतरी रहे गइ। लेकिन यह भी तो उतना हो सत्य है कि
सोदश्पता न कहानी को बुरूप भापण था नारेवाजी वना निया । मुत यही है दि
इस सशक्त माध्यम वी व्यक्तियों दला वर्गों के स्वाथ साधन व लिए सौंपना नहीं
चाहिए 1 भेरवप्रताद गुप्त न बहानी वी व्याथ्या वरते हुए इस मायता मां विरोध
दिया हूँ कि व वन शिव्प अयवा चामद्कारिक वलात्मकता के आधार पर ही कोई
कहानी सफन नहीं होती । उनका विचार है कि कहानियाँ क्वल शिल्प, रमीन
वणन, कला कौ बलावाजी के बल पर खड़ी नहीं होतीं उनका निर्माण जीवत वस्तु
कला पर होता है बौर इसीलिए व पत्थर को तरह ठोस और वत्रीट की तरह शक्ति
सेम्पन होती हूँ। उनमें आपको बड़े बोल नद्दी मिलेंगे, धूमाव फ्राव था बाल की
बाल निकालन वाली बारीकी नटीं मिलगी मिलेगी एक सरसता एव सहजता, एक
साहगो और एक सीधापतन । लय भी सीधा अचूब होता है। कहानी की प्रभावगत
एवारमकता के दिपय में विदार वरते हुए गुप्त जी ने बताया है कि वहानी की कोई
एक वात या कई एक विशेषता हमारे मन में नहीं दसती, पूरी कहानी हमारे स्मति
पट यर चित्रित रहती है। इसका कारण यह है कि कहानी लेखक एव बन
विशेष या एक चरिन्न विशेष के इ” गिल कथानक के जाल नही बुनते, बहिंक जीवन
का एक जिदा टुकड़ा दी उठाते हैं बोर इस ही थपनी सहज वला से गढ कर सामन
रख देते हूँ ।'
आचाय नददुलारे वाजौयी ने आधुनिक कह्टार्न
बतर को स्पष्ट किया है। इम विपय पर हि हर दसपोत दाना
प्रचलित मायताबा का छत विरोध
किया है। उनका विचार है कि इन नई कहानिषों का प्राचीन कहानियों दे भसम्बद्ध
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