मध्ययुगीन निर्गुण चेतना | Madhy Yugeen Nirgun Chetna

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Madhy Yugeen Nirgun Chetna by डॉ धर्मपाल मैनी - Dr. Dhrampal Maini

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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०» ० ० परिचय ०. ०. ०» विगत 20-25 वर्पों से सत काव्य के माध्यम से मैं मध्ययुगीन निगुण चेतना वो समभकने का प्रयत्न करता आया हु, लेकिन भाज भी उसके रवरूप का बोध हो सका हो, ऐसा श्रनुमव नहीं होता । शायद ऐसा इसलिए भी हो कि उस चेतना वी अनुभूति के लिए उसमे जीना भावश्यक होता हो, जो आज के बौद्धिक एव वैज्ञानिक युग में बहुतायत से नहीं हो पाता। फिर भी हम उसे भ्रपने बौद्धिक प्रयत्न से पा लेना चाहते हैं ! लगता है, यह कति भी ऐसे ही एक भ्रपिरिपकव प्रयतन का परिणाम है । मध्य-युगीन चेतना को समकते के लिए भारतीय सस्कूति के आधार का बोध श्रावश्यक है। उत्तर भारतीय समाज में सस्कलि प्राचीन काल मे श्रौर मध्य युग के श्ारम्भ मे बसे रुपायित हुई? इसका बोघ होने पर ही हम उसकी चेतना के निकट पहुच सकत हैं । पहले तीन निबघ इसीलिए यहा स्थान पा सके हैं । इस युग के निगु णिया सतो के प्रखर व्यक्तित्व और उनके सशक्त चितन ने भ्पन युग क॑ समाज को क्सि प्रकार श्रादोलित किया, इसका लेखा जोखा उनकी चैत य चेतना का दशन करवा सकता है । शेप निब धो वे माध्यम से यही प्रयत्न क्या गया है. जिनका समाहार “मध्ययुगीन निगु ण चेतना नामक निबघ मे हुआ, जो कति का अभियान भी बन बठा । गुरूवर श्राचाय हज़ारी प्रसाद द्विदी ने *सध्यकालीन वोघ को समभाने क॑ लिए पजाव॒ विदवविद्यालय की प्राथना पर कुछ वष हुए पाच व्याख्यान लिए थे, जो बाद मे “मध्यकालीन बोध का स्वरूप नाम से उ होने भकाशित भी किए हैं। उनके यक्तित्व की तरह इस कठि म भी भध्ययुण को माण-्तत्व ध्वनित होता है । उदाने सेडातिक एवं मूल भूत तत्वों का सूक्ष्म विश्लेपण प्रस्तुत किया है । उनकी दप्टि निगु ण सगुणातीत है। यहां केवल निगु थ-चेतना को उभारने का प्रयत्न शिया गया है 1 उ हुनि अमूत्त को मूत्त किया जे




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