संमतितर्क - प्रकरणम् भाग - 1 | Sammati Tark - Prakaranam Bhag - 1

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Sammati Tark - Prakaranam Bhag - 1 by आचार्य श्री सिद्धसेन दिवाकर - Aacharya Shri Siddhasen Divakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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संपादकीय निवेदन अनेक उपयोगी विषयोनों उड्ापोह्ट करती विस्तृत प्रस्तावना तो प्रस्तुत मंथ संपूर्ण छपाई रहा पछीज उखी शकाय.. अयारे तो आ संक्षिप्त निवेदनमां मुख्य बे बाबतोनुं दूचन करवानुं छे ( क ) प्रंथनुं विशिष्टत्व अने ( ख ) शप्रकाशननी योजना. (क ) मंथनी विशिष्टता निन्नठिखित बे बावतोथी जाणी शकाशे ( १ | ग्रंथकार अने (९) ब्रंथनुं बाह्माभ्यन्तर खरूप- (१) अ्रंथकार ( मूवठकार ) समय: मूढठना कर्ता आचाये सिद्धसेन दिवाकर छे.. जैनपरंपरा प्रमाणे तेओ विक्रमनी पहेली झताब्दीमां थई गएढा मनाय छे. तेओ दिगमस्वराचाये कुन्दुकुन्द अने समंतभद्र ए बन्नेना पहेलां थया होय तेवी संभावनानां केटलांक कारणों छे तेमज श्वेताम्बर अने दिगम्बरनो पंथमेद थया पह्ेलां पण तेओ थया होय तेम मानवानां केटडांक कारणों छे. तेथी विक्रमनी पहेली शताब्दीमां तेओ थयानी जैनपरंपरा उपर गम्मीरपणे एंतिहासिकोए विचार करवो जोईए. अयारे केटछाक ऐतिहासिको तेओने विक्रमनी पांचमी झताब्दीमां मूक्ते छे. स्थान, जाति अने धर्म) तेओजुं जन्मस्थान विदित नथी, पण उज्ञयिनी अने तेनी आजुबाजुए तेओए जीवन गाल्युं होय एम जणाय छे, तेथी तेओना प्रंथोनी रचना पण तेज प्रदेशमां थयानों संभव छे. तेओ जाते ब्राह्मण अने कुछधर्मे वैदिक हता, पण पाछछ्थी तेमणे जैनाचाये वृद्धवादीनी पासे जैनदीक्षा लीधी हती. योग्यता। दिवाकर असाधारण जेन दांनिक अने संस्कृत प्राकृत भाषाना विद्वान हता एटलुंज नहि पण तेओ मध्यकालीन प्रधान भारतीय दाशेनिक विद्वानोमांना एक हता, एम ते ओनी कृतिओज कही आपे छे. तेमनी विचारमां उदारता, प्रतिभामां स्वतब्रता; ज्ञानमां स्पष्टता, गद्यपचलेख- नमां सिद्धदस्तता अने वस्तुस्पशेमां सृश्ष्मता तथा. विविध ददनोना मौछिक स्वरूपमां निष्णातता, ए बघु तेओनी थोड़ी पण उपलब्ध कृतिओमां वाक्यवाक्यमां जोनारने नजरे पडशे. कृतिओ: उपढब्ध कृतिओमां संभति मूठ प्रात छे. एकवीस बत्रीसीओ, न्यायावतार तथा कल्याणमंदिर संस्कृत छे. कल्याणमंदिरमां तीर्थकर पारश्चनाथनी स्तुति छे. न्यायावतार ए संस्कृत जैन सादियमां पथत्रंध आदि तकेप्रंथ होई समस्त जेन तकंसाहित्यना पाया रूपे छे. बत्रीसीओ स्तुतिरूप होवा छतां तेमां दाशनिक विषयों छे.. बैद्िकि, बौद्ध अने जैन ए समकालीन समग्र भारतीय दर्शनोनुं स्वरूप ते बन्रींसीओमां छे. आ बत्रीसीओज पद़्दशनसमुच्यय अने सर्वदशेनसंप्रहनी प्राथमिक भूमिका छे. सिद्धसेननुं बीजुं नाम “गन्धदस्ती' तु; तेओए आचारांगना प्रथम अध्ययन उपर विवरण ख्युं हतुं, जे 'गन्धददस्तिविवरण' कहदेवाय छे, भाजे ते उपछब्घ नथी. टीकाकार टीकाकार अभयदेव, श्रेताम्बरीय राजगच्छमां थएल प्रशुम्नसूरिना शिष्य होई दृशमा सैकामां थई गया छें. तेओनी जाति, जन्मस्थान आदि शात नथी; तेओनी बीजी कृति हपठव्ध के




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