रजत जयंती | Rajatjayanti
लेखक :
गोरावाला खुशाल जैन - Gorawala Khushal Jain,
चंद्रशेखर अस्थाना - Chandrashekhar Asthana,
भगवती प्रसाद पांथरी - Bhagwati Prasad Panthari,
राजाराम शास्त्री - Rajaram Shastri,
विश्वनाथ शर्मा - Vishwanath Sharma
चंद्रशेखर अस्थाना - Chandrashekhar Asthana,
भगवती प्रसाद पांथरी - Bhagwati Prasad Panthari,
राजाराम शास्त्री - Rajaram Shastri,
विश्वनाथ शर्मा - Vishwanath Sharma
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
581
श्रेणी :
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गोरावाला खुशाल जैन - Gorawala Khushal Jain
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चंद्रशेखर अस्थाना - Chandrashekhar Asthana
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भगवती प्रसाद पांथरी - Bhagwati Prasad Panthari
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राजाराम शास्त्री - Rajaram Shastri
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विश्वनाथ शर्मा - Vishwanath Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)* आधिष: आधास्ते'
श्री काशी विद्यापीठकी स्थापना, श्री शिवप्रसाद गुप्तजीकें उदार हृदयने किया, और इसका
उद्घाटन महात्मा गांधीजीके पवित्र हाथों ने । पीस वर्ष बाल्य और यौवनके पूरे करके, अब यह
प्रौढावस्थामें अवेश कर रहा है । बाल्य और यौवनमें भूठें किससे नहीं होती ? सब आशा किसकी
पूरी होती हैं ? यदि इस संस्थासे भी मूठें हुईं, और स्थापकक संकल्पमं जो आशाएँ थीं, उनको
पूरी न कर सकी, तो कया आश्चर्य । पर, देशके सामने इसके प्रबन्धकों, अध्यापकों, अध्येताओोंने,
त्याग, तपस्या, देशभक्तिका अच्छा उदाहरण रकक््खा, और भारतके सभी प्रान्तोंमें राष्ट्रीमाव जगानेंमें
कांग्रेस की सहायताकी । यदि उस जागसे आशासित कार्य सिद्धि नहीं हुई, तो यह कांग्रेसके
नेताओंक मानुप्य-सुरुभ बुद्धि-दोष और अदेरदर्दितासे । मानव-संसार मात्र की परिस्थितिभी अधिकाधिक
कलदमय, युद्धमय, नितान्त जटिल होती गयी है, जिसका सुलझाना अब बहुत कठिन हो गया है ।
पर अब भी असम्भाव्य नहीं है । सम्बत् १९८५५ विक्रम सन् १९२९, ई० में, जब काशी
विद्यापीठकें वार्षिकोत्सवमें महात्मा गांधी उपस्थित थे, मैंने उनसे, सभाके समक्ष, इस संस्थाकी
प्राण-प्रतिष्ठा करने वाले बीजमंत्रकी प्रार्थनाकी थी । उन्होंने मुझसे कहा कि “यह काम तुम ही
करो । तब मैंने, उपस्थित जनताके समक्ष यही कहा था कि “कर्मणावर्ण:, वयसाआश्रम”” अर्थात्
“विदव-ध्म, अध्यात्म-विद्या पर प्रतिष्ठित, चातुर्वेण्य-चातुराश्रम्य उत्मक समाज व्यवस्था! ही ऐसा
बीजमंत्र है; नितान्त प्राचीन भी और नित्य नवीन भी; “वलड आडर फैंडिड ऑन बल ड-रिलिजन
सैकॉलोजी, फ़िलॉसोफ़ी'--यदि इस बीज-मंत्रके अनुसार, विवेक-पूवक काये किया. जाय, तो
अब भी, भारतवर्पकी, तथा अन्य सब देशोंकी, जनताका उद्धार हो सकता है । में यही आशा
करता रहता हूँ कि काशी-विद्यापीठके कार्य-कर्ताओं, तथा कांग्रेसके नेताओं, तथा अन्य देशोंके
नायकोंकी दृष्टि इस ओर फिरे ।
सौर १४ माघ, वि० २००३ ।॥ जा: (न 4 र्श्श्श्र ट
( २७४ जनवरी १९४७ ई०८ ) <-उ
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काली विद्यापीठने अपनी जिन्दगीके पचीस बरस पूरे कर लिये और अब उसकी सिख्वर
जुबली मनाई जा रही है। यह विद्यापीट हमारी आजादीकी तहरीकसे पैदा हुआ था ओर
महात्मा गाँधीने इसकी नींव अपने हाथोंसे रक्खी थी । मैं इस मौके पर अपनी दिली मुबारकबाद
पेश करता हूं और उम्मीद करता हूँ कि यह विद्यापीठ हमारी कौमी तालीमके मैदानमें हमेशा
शानदार खिदमत अन्जाम देता रहेगा ।
दिल्ली, १९ दिसम्बर १९४६ इ० । अवुल कलाम आजाद
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