परिहार | Parihar
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
150
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)एक
विजयददमी के दिन सन्ध्या रानी को पावन एवं हरियाली की रम्प गोद
में गंगनहर के किनारे बैठा विवेकानन्द स्वच्छ घारा की देख रहा था जी
किनाऐं से टकराती, कल-कस ध्वनि करती भागे बढ़ रही थी । उसी गंगनहर
के दूसरे कितारे पर विजयदशमी कर मेला लगा था ।
इस मेले को देखते के लिए प्रप्रेजी शासन में अनेक पयंटक भौर सैलानी
आते थे । उस समय दस मेले का नाम प्रिटिश फेस्टिविल था । इस मेले की
स्पापना बिटिया यंग ब्लंद एसोसिएशन ने की थी, जिसका श्रष्यक एवं
संचालक थ्री एम० फिलिप था जो मारत में मेरठ क्षेत्र का मुख्य थाधुक्त
(बिफीकर) था ।
उसे समय इस मेले का उद्देश्य पबंटकों का मनोरजन करना था भौर
सनकी यात्रा को सुखद तथा चिरस्मरणीय बनाना था । यह मेला एक सप्ताह
चलता था । इसमे बराइटी को, कंविमस्मेसन, मुशायरा, कव्वाली संगीत
झादि का प्रवर्ध होता था । विशेष रूप से जिले की वेदयाग्रों का एक कक्ष
बनता था जिसमें जिले की प्रसिद्ध वेदयाएँ नृत्य करने के लिये श्राती थी, जो
पर्यटकों के लिये एक महत्वपूर्ण श्राकंपण तया मनोर॑जन होता था । पह उत्तर
भारत में झपने ढंग की नवीन चीज थी जो पर्यटकों तथा मंलानियों के लिये
मुख्य झायुक्त की मेंट थी ।
नगरपालिका की भोर से मुख्य प्रायूवठ के भ्रादेश पर एक जलपान गुह
तया जलाशय का प्रबन्ध किया जाता था जिसका केवल पर्पटक हो प्रयोग कर
संकते थे ।
जहाँ नुत्य के घुष॑शप्रों की ध्वनि कर्णपट से टकराती थी, वहाँ मन्दिर की
मधुर ध्वति मी परस्पर टकराकर रह जाती थी । विजयदशभी के पूर्व प्रप्टमी
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