पट्टमहादेवी शान्तला भाग 1 | Patt Mahadevi Shantala Vol I

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पी० येंकटाचन शर्मा - P. Yenkatachan Sharma

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सी० के० नागराजराय - C. K. Nagraj Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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लेखकीय (प्रस्तुत सस्करण के संदर्भ में) 'मारतीय भाषाओं के साहित्य के इतिहास को जाननेवाले किसी भी व्यक्ति को यह एक इन्द्जाल-सा मालूम होगा । एक कर्नढ का उपन्यास, घह भी कल्नढ में प्रकट हुए तीन ही वर्षों में हिन्दी में प्रकट हो रहा है, यह आश्च्म की वात तो है हो। इस भाश्चयंकर भटना के लिए कारणीमूत साहित्यासक्त सट्ददयों को मनसा स्मरण करना मेरा प्रथम कर्तव्य है। “पटटमहादेवी शास्तला” करनड में जन प्रकाशित हुआ तो थोड़े ही समय में सभी वयोवस्या के, सभी स्तर के, सभी वर्ग के सामान्य एव बुद्धिजीवियों की प्रशंसा का पात्र बन गया ! उस प्रशसा का परिणाम ही, इसके हिन्दी मनुवाद का प्रकाशन माना जाय तो शायद कोई गलती नहीं होगी । मुझ से सीधे परिचित न होने पर भी इस कृति को पढकर सराहनेवाले डॉ. आर. एस. सुरेन्द्र जी, उनके वन्धु एवं मिश्रवर्ग की सहाठुध्ुति के फलस्वरूप इस कृति को हिन्दी में लाने की इच्छा से सम्मान्म श्री साहू श्रेयांस प्रमाद जैन से परिचय कराया । इस उपन्याम को पढकर इस में रूपित शान्तलादेवी के व्यक्तित्व से आकृष्ट होकर, इसे हिन्दी में अनुवाद करने की तीद्र अभिलापा रखने वाले मेरे वृद्ध मित्र थी पिं. वेंकटावल शर्मा भी परिचय के समय अचानक साथ थे । इस परिचय और सन्दर्शन के फल- स्वरूप ही, भारतीय ज्ञानपीठ इसके प्रकाशन के लिए इच्छुक हुआ 1 भारतीय ज्ञानपीठ, के निर्देशक श्री लड्मी चन्द्र जैन से मेरा पहले से परिचय रहा है। निन्तु वर्षों से सम्पर्क न होने मे जैसे एक-टूसरे को जुल-से गये थे । यह 'रचना तुरन्त पुरानी मंत्री को नया रूप देकर हम दौनों को पास लायी । भर वह मात्सीयता इस बार स्थायी वन सकी 1 पकाशन के कार्य भार को सीधे वहन 13




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