भावना [गद्य काव्य ] | Bhaavnaa [Gadya Kavya]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मालिन मालिन फूलों की डलिया लिये वह मालिन नित्य आधीरात को उस उद्यान में पहुँच जाती है । फूल चुनने का, भला, यह भी कोई समय है ! माला यूँ थने की, भला, यह भी कोई बेला है ! मालिन कभी किसी से कुछ बोलती नददीं । अपनी ही 'घुन में मस्त रहती है । कभी मूक-वेद्ना की भाँति चुपचाप निकल जाती है, तो कभी थिरकती हिलोर की तरह कुछ अलापती हुई । + किमी को उससे कुछ पूछ-ताछ करने का साहस भी नहीं होता । उस समय जो भी उस प्रेम-प्रतिमा को . देखता है, वद्दी अपना मस्तक भक्ति से उसके चरणों पर झुक्ता देता है । उस अनुरक्ति- देवी के माग पर कौन श्रद्धा-भक्ति के पुष्प न छितरा देगा ? [ ११




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