वैदिक धर्म | Vaidik Dharm

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Vaidik Dharm by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सांख्यदर्शनका मुश्म बल तथा वेदान्तपर इसका गंभीर प्रभाव (छेखक- प्राध्यापक गणेश अनन्त धघारेइवर, बी.ए. भूतपूर्व सस्कृतो ए।ध्याय, उस्मानियां विश्वविद्यालय, हैदाबाद दृक्षिण) (बनुवादक- श्री पं. दू. गे धारेखर, बी. ए., औध) इुतिहासमें इस बातके पथाप्त उदाहरण देखने को मिछते हैं कि किसभति भतक्ये एवं सूक्ष्म ढंगसे विजित छोग विजे- ताभोपर विजय पाउंते हैं । इतिहासके छात्र जानतेही हैं कि पददलित तथा पराजित भरत: नख्र यूनानने कैसे अप ने गर्वोधत विजेता रोमकोभी शीश झुकाने में प्रदत्त किया। ठीक उसीतरह,विनख्र बनाये गये सांख्यने समय पाकर गर्वित तथा विजयी बेदान्तको दिनत करडारा है | बेदास्तकी यह सगवे घोषणा है कि उसने सांख्यको परास्त किया पर इम यहीं पूछना चाहते हैं कि व तानिक अपने अन्त श्तछकी जॉचपडताक करके देख के तो विदित होगा कि सांख्य प्रतिपादित सिदध/न्होंसे बट स्वयं कितना प्रभावित हो बा है| वास्तविक बात यही है कि पगपगपर वेदान्त में सांड्यकी झछक दीख पड़ती हैं भर्थाए यह बात ऐसी ही है कि मदोद्धत होकर एक ज़ीर शतसंख्याक शत्रु दुढोंको पढाढ़ दें, पर भस्ततोगर्बा खुदद्दी किसी नायिकाके सम्मुख नतमस्तक बन बेठे । वेदान्त साभिमान कहता है कि अन्य सभी दू्शनॉंको उसने विजित करडाछा है, इस किए बह सर्वोपरि है, छे किन सांख्यके चरणॉपर उसे झुकजाना ही पढ़ा । इससे _स्पष्ट है कि सांख्यक। बढ कितना है तथा उसकी मॉइकता कितने कषलाक्षित प्रकारसे कार्य करती है। अस्तु, सख्यद्शनका यह अछक्षित मोदकत्व किस ढंग का है तथा वेदास्त दुशन भी किस गहराइंतक इससे प्रभावित हो खुका है इसकी चर्चा इस छंखमें की जायगी । साख्यदुर्शनकी विशेषताएँ इस प्रकारकी हैं- पुरुष- प्रकृति रूपी द्ेत कपना, पुरुष निशुण निष्क्रिय निससज् है ऐसा मानना, प्रकृति सगुण सक्रिय-ससह एवं त्रिगुणामि का है ऐसा! समझमा भोर उत्क्रान्तिवाद एवं. प्रकयवादमें अनुसार इंशर ( बासकपरमात्मा ) के बारेसें अजेयवाद का भाश्रय ठेना | भर भद्देत वेदास्तकी विशेषताभोपर दृष्टिपात कीजिए तो पता चढेगा कि ' परमाहमा -जीवात्मा-प्रकृति रूपसे ब्रह्म या पुरुपकी त्रिविघ कल्पना करना, पुरुष ( जहां )) निर्ुण निष्क्रिय निस्पड् है ऐसा समझना, ईश्वर जी व प्रकृति की सगुण-सक्रिय-ससझ् कल्पना करना, उत्पत्ति एवं प्रलय की कल्पना तथा-बह्म माया सिद्ध/न्तके भनुसार इंश्वरवाद का सद्दारा लेना इसमें अस्त भूत है । साम्य तथा वैपम्य भव दोनों दर्शनोंके मध्य जो समता तथा विषमत। है उसे समझ ठेना को दे कठिन बाते नहीं क्योंकि ऊपर जो कह है उससे स्पष्ट होता हैं. कि दोनोंमें ही समता भत्यधिक है और विभिन्नता बहुतद्दी थोड़ी है | हमारा ख्याछ है कि ऐसा बेशक कहा जा सकता हैं, बेदान्त और तथाकथित अद्वेत वेदान्तमें भी सांख्यदर्शन पूर्णतया ब्याप्त है. एवं वेदान्तकी भ्रव्यन्त गहरादेसें भी सांख्यकी झछक दीखे पड़ती है । यदि आस्तिकवादसे प्रभावित छोग कहने गे कि चेदान्तने सांख्यकों पराभ्ूत किय। है तो उधर भ्रशेय-वादी छोग मी डतने ही आावेशसे प्रतिपादन करते हैं कि साँ- खूघने देदास्तपर प्रभुरव प्रस्थापित कर रखा हे | इतनाही नहीं किन्तु ये अज्ञेयवादी जब्र कहते हैं कि आगे चलकर जो सांख्य नामसे विदित हुआ बढ़ी उपानिषदों एवं कुछ चैदिक सूक्तोंका भी जिनमें ऋष्वदके दशममंइकरथ प्रथित नासदीय सूक्तका समायेदा है, वास्तविक मूक भूत चेदान्त है तब कहना पढ़ेगा कि सचाई इनके पक्षें पायी विश्वास रखता तथा संश्यास्तगंत एक पत्थकी थारणाकि « जाती है ।




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