गांधी ग्रंथ | Gandhi Granth

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Gandhi Granth by प्रेमनारायन माथुर - Premanarayan Mathur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महात्मा गाँधी और उनका इतिहास में स्थान वास्तव में यह धारण सत्य ' नहीं है । संसार मिथ्यी है, इस ' घारण में इसी द तक सच्चाई है कि हमारा श्रध्यास्सवाद इस भौतिक * ' जगतूत्को श्रन्तिम सत्य नहीं मानता । लेकिन इसका यह श्रथ लगाना अ्रममूलक होगा कि भारतीक दर्शन मनुष्य को जीवन के सामाजिकं पत्त से विमुख करना - चाहता है।। इस बात के दो प्रमाण हैं । सबसे पहली श्लीज तो यह हैं कि भारतीय दर्शन की लक्ष्य पाइचात्य दर्शन की भांति केवल शान, -फ्रीप्ति कभी नहीं रहा है..। उसका एक मात्र-उद्देश्य रहा हैः जीर्वनः में, जो जुराई' ..व्यात, हहै उससे' मनुष्य जीवन को मुक्त .करने का मार्ग 'दिखाने काः। दशन-शोर ' सु्टिमरहस्य के प्रश्नों पर जों मी' विचार किया गया है वह / झनायास: ही ' जीवन की समस्यात्रों के हल पर विचार करने के साथ-साथ हो गया है । इसी लिए: दम यह कहते हैं कि भारतीय दर्शन का क्षेत्र क्रेवल,. तक ' तक ही सीमिंतः नहीं है, वह नीति-्रनीति के. क्षेत्र को भी छूता है +्रौर उसको पार करता हुआ जीवन का जो सबसे 'उच्च और '' झाध्यात्मिक: “स्तर है, उस, तक जाता है। इस बात का एक श्रन्य प्रमाण भी है । हमारे प्राचीन शास्त्रों में मनुष्य मोक्ष प्रात कर सके इसके लिये यह अनिवार्य: समझा गयां है कि वह पहले जीवन॑ की सामाजिक वस्था' से पार हो श्र समाज -के .प्रति ' अपने कतंव्यों को पूरा करे । उदाहरण के लिये. हमारे यहाँ.'स्चार शश्रमों की जो' व्यवस्था की गई थी उसमें ग्रहस्थ-जीवन का श्रपना: विशेष स्थान रहां है । _ इसके अतिरिक्त मोक्षओापि के लिये जिन साधनों की बविंमिन्न भारतीय दर्शनों में उल्लेख किया. गया है उनमें उन तमाम सामाजिक श्र नैतिक गुणों के. विकास पर भी जोर दिया है , जिनका होना ' सामाजिक शान्ति सुव्यवस्था, तौर प्रगति के लिये श्रावश्यक * माना 'जाता है । यह बात एक. हद तक उन भारतीय 'दशनों के बारे में भी.-लागू.' होती है जो मोच' प्राप्ति के 'लिये क्रिसी प्रकार की . सामाजिक . जीवन . की श्वंश्था. दौर उसके श्रनुशासने में से 'हॉकर गुजरना श्रावश्यक ' नहीं : मानते: | ..जैसे. बौद्ध श्र जेने दर्शने में. भी. श्रेहिंसां, दया, सह नुगूत्ति '्ादि , सामाजिक शुणों




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