महान दार्शनिक माला | Mahan Darshanik Mala

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रामनाथ कौल - Ramnath Kaul

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संगमलाल पाण्डेय - SangamLal Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गान्धी का दर्शन . [ श्रष्याय है दी । झाज महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया। आज सुकरात को हलाहल पिलाया गया । झाज ईसा मसीह को सुली पर चढ़ा दिया गया । झाज कृष्ण को उनके साथी व्याध ने गोली से मार डाला । आज मुहम्मद का स्वगंवास हो गया । आज सत फ्रांसिस मतमेदों में पिसकर प्रेम का पाठ पढ़ाते हुए सदा के लिए सो गये । झाज हमारा देवदूत ओममल हो गया । आज इश्वरावतार अह्ष्ट हो गया । आज अच्छाई चली गई; सत्य-पक्षी उड़ गया, सत्‌ की मूर्ति रह न गई, ज्ञान उठ गया; नीति भग राई. ......... । आज. . ....... | भारत के प्रधान मन्त्री; महात्मा गान्धी के शिष्य, जवाहर लाल नेहरू ने सब का सार यों व्यक्त किया-- संसार मे जो प्रकाश था; वह 'आज अस्त हो गया । जन्म, बचपन, शिक्षा और वकालत... यह प्रकाश * अक्टूबर १८६४ इंसवी को पोरबन्दर, सुदामापुरी काठियावाड़ से कमंचन्द्र गान्थी के घर उनकी चौथी पत्नी पुतली बाई के गभं॑ से उनकी सबसे छोटी सन्तति मोहनदास के शरीर में छाया था। पर उस समय यह प्रकटै न था । कोई इसको जगदू-व्यापी न समझता था । मोहनदास साधारण बालक की तरह विकास करने लगा । माता-पिता की धार्सिक प्रवृत्ति के कारण वह मंदिर श्रादि में बचपन से ही जाने लगा । राजकोट की ग्राम पाठशाला से कस्बे की पाठशाला 'और फिर इससे हाईस्कूल तक पहुँचने में उसके बारह वरष॑ पूरे हो गये। हाईस्कूल के समय की एक घटना घटी जिसमें उसने सिद्ध किया कि वह नक्काल नहीं हे । इसी समय सत्यवादी हरिश्चन्द्र घर श्रवण-पितृ-भक्ति इन दो नाटकों को देखकर उसने सत्यवादिता और पितृ भक्ति की प्रेरणा प्राप्त की । तेरद वष॑ की अवस्था में ही कस्तूरबा के साथ उसका विवाह हो गया । वह विषय-सुख में विशेष ासक्त था । विवाह के परिणामस्वरूप उसकी पढ़ाई का एक वष॑ बेकार चला ७




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