नीतिविवेचन | Nitivivechan

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Nitivivechan by कांतिलाल केशवराय नानावटी - Kantilal Keshavray Nanawati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रै० . नीतिविवेचन जाता है के हितकर वस्तुका स्वरूप कसा होता है । जीवनके झेयस्कर अनुभवों का एक साथ वर्गाकरण होकर वे किस प्रकार एक दसरे के संकलित हैं यह देखना उसमें लान्इयक होता है । नीतिशाखकी रचना किस प्रकारकी बाता के आधार पर होती है इसका इस स्थरू पर कुछ दृष्टान्तेंसि स्फुटीकरण करें | यदि कोई पिता अपने बच्चों को पूरे कपडे और खाना देता हो हो इम उसको अच्छा कहते हैं और यदि वैसा वह न करता हो तो उसको खराब कहते हैं ! अन्य बातोंमिं उसके छिये हमारा केसा. भी अमिप्राय हो परन्तु इस खास बातमें तो हम उस के लिये . दूसरा अभिप्राय नहीं रख सकते हैं। परन्तु मान लिया जाय कि : उस मनुष्यन इस काम के छिये द्रव्य प्रामाणिक श्रमसे नहीं . किन्तु किसी के मकानमें प्रवेश करके चोरीसे लिया है । इस दामें हम कहेंगे कि मनुष्यको अपने बच्चोंका भरणपोषण करना यह एक अच्छी बात है, परन्तु चोरी करके यह करना बुरा है । किसीभी संयोग मनुष्य अपने बच्चोकी तरफ लापरव! रहे और चोरी करे इन दोनेंको हम असत्कृत्य मानेंगे । दयाछता और स्नेह भाव इन दोनोका हम अच्छे कहेंगे, और इसके विरुद्ध द्वेष और दुःख देने की वृत्तिको हम बुरी बतायंगे । इसी तरह सत्य भाषण अच्छा और असतय भाषण बुरा माना जायगा । ये केवरू थोड़ेसे सह - हृष्टान्त हैं, और शास्त्रों की तरह नीति शाख्रमी साध'रण मनुष्यों के अनुभवों पर नहीं स्थापित हो सकता है । - नीति शाखें भी




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