उपवास चिकित्सा | Upvas Chikitsa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आधक मार्जनसे हानयों । भुखरी गुटामीमे पड़े हुए हैं और उसके फन्देमे बय निवठना आपका कर्तव्य है । जब आप यह बात अच्ठी तरह समझ देंगे और भदिष्यमे कभी अनावश्यक भोजन न करनेका दृड सके स कर छेगे तय आपको बनायटी झूखकी शुदामीसें छूटनेमें अधिक समय न लगेगा । ज्यों प्यों साप उत्त वनावटी भुखकी गुलासीसे निकल- जेका प्रयत्न करने छगेंगि त्यों त्यों आपरो अधिक आनन्द और सुर होने ठगेगा और आप अपने मिनोंको भी अपना अजुगासी बनाने और कम भोनन करनेके लाभ समझानिका प्रयत्न करने लगेंगि । आपने कुछ ऐसे लोग भी देखे द्वेगि जो प्रायः इस वातरी दिकायत किया क्रंरते दै कि हमे तरह तरहडे बढ़िया माजनोंमें भी कोई स्वाद या आनन्द नहीं आता अथवा आजकल भोजनमें दमारी रुचि नहीं होती । ऐसे छोगावी चातोंदा सास्तप्रिक सात्यय यही द्वोता है मि भाजन्का वास्तविक आनद छेनेंमें थे नितान्त ससमर्थ दा गये है। जिस मनुप्यका स्वास्थ्य सब प्रगारसे अच्छा दता दे चह्द जा छुठ खाता है स्व रुचिस साता है । उसे सम्तिम कौर भी उतना ही स्वाद लगना है जितना कि पदज४ कौर । सर तररसे नीरोग आदर्मीकी यददी अच्छी पहचान है तरदद तरदवी मसाखिदार चर्टीनयों और अचाररवी आवश्यम्ता उन्हीं छोगॉरी पढ़ती दे जिनफी पायनशक्ति किसी प्रतार न दो जाती टै । अच्छी पाचनशक्तिवाले मनुष्यसा अयदा वास्तादिक भूयके समय बहुत ही साधारण भोज- नफा भी एक एक कौर अमृतके समान स्थादिष्ट और माठा जान पडता है । और नदी तो स्वादि्ने स्वादिष्ट पदार्थ भी एस म्रद्धारवा बेझा जान पढ़ता है और लोग उसे इस प्ररार साते है मानों वे वड़ी साचारी था सकटमें पड़े दे । ऐसी अवृस्वामें जवरदस्ती दसवर भोजन करना ही अच्छा ड्वे या उसे छोड़ देना यह बात रिचारवान्‌ पाठक स्वयं समस सकते हू । छ्ज




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