हिमालय की गोद में | Himalay Ki God Men
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about महावीर प्रसाद पोद्दार - Mahavir prasad Poddar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हरिद्वार
चगेरह जानेवालोका, सब प्रबंध कर दे तो कितना अच्छा हो । -
पहले पत्र या तार पाकर, कली, मार्ग-दंक, रुपया-पैसा, सवारी,
खानपान आदिका बन्दोबस्त उसके माफंत हो जाय तो यात्रीको
वडी सहुलियत हो सकती है । ऐसी एजेसिया खुद कूछ पैसे कमाते
हुए, लोगोको भी थोडा लाभ पहुंचा सकती ६ । पर होगा यह
एक प्रकारका कद्रीकरण ही ।
श्रीनवंदाप्रसादजीके गाव (मडेला) के नाइंसे, जो धमें-
शालामे रहता था, हजामत बनवाकर, गगा नहाने निकले ।
मे यहां चौबीस साल पहले आया था, तबसे तो हरिद्वार अब
बहुत आवाद जान पडा । धमेंशालाओकी तो कतार-सी बन
गईं है । एक धर्म शाला--मुहह्ला-सा ही हो गया लगता है ।
और भी वहुत नए मकान बने जान पड़े । देखते-दिखाते हम
हरकी पैड़ी पहुंचे । वहां ज्योही गोता लगाया, मन, दरीर सब
हरा हो गया और हरिद्वारमे गगा-स्नानका महत्त्व समकमे
आ गया । गगामे खूब नहाए और तैरे । यहा घाटपर वैठ जाओ,
भिन्न-भिन्न प्रातोक हजारो नर-नारी दिखाई देंगे । कोई माला
फेरते, कोई ध्यान लगाए, कोई अपने मृतक माता, पिता या
पत्नीके फूल गगामे डालते और कोई उन्हें पैसेके लालचसे
चुनते, दिखाई देंगे । यहा श्रद्धाका एक वाजारःसा लगा दिखाई
पडता हैं ।
गगा नहांकर मुभके बड़ी प्रसन्नता हुईं । मे तो इधर अच्छे
ठडे पानीका मजा ही भूल गया था । मेरा खयाल हू कि यहा
एक अच्छा प्राकृतिक चिकित्सालय हो तो हफ्ते-दो-हफ्तेमे ही
काफी रोगी आराम करके घर भेजे जा सकते है। जलका नाम
User Reviews
No Reviews | Add Yours...