हिमालय की गोद में | Himalay Ki God Men

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Himalay Ki God Men by महावीर प्रसाद पोद्दार - Mahavir prasad Poddar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हरिद्वार चगेरह जानेवालोका, सब प्रबंध कर दे तो कितना अच्छा हो । - पहले पत्र या तार पाकर, कली, मार्ग-दंक, रुपया-पैसा, सवारी, खानपान आदिका बन्दोबस्त उसके माफंत हो जाय तो यात्रीको वडी सहुलियत हो सकती है । ऐसी एजेसिया खुद कूछ पैसे कमाते हुए, लोगोको भी थोडा लाभ पहुंचा सकती ६ । पर होगा यह एक प्रकारका कद्रीकरण ही । श्रीनवंदाप्रसादजीके गाव (मडेला) के नाइंसे, जो धमें- शालामे रहता था, हजामत बनवाकर, गगा नहाने निकले । मे यहां चौबीस साल पहले आया था, तबसे तो हरिद्वार अब बहुत आवाद जान पडा । धमेंशालाओकी तो कतार-सी बन गईं है । एक धर्म शाला--मुहह्ला-सा ही हो गया लगता है । और भी वहुत नए मकान बने जान पड़े । देखते-दिखाते हम हरकी पैड़ी पहुंचे । वहां ज्योही गोता लगाया, मन, दरीर सब हरा हो गया और हरिद्वारमे गगा-स्नानका महत्त्व समकमे आ गया । गगामे खूब नहाए और तैरे । यहा घाटपर वैठ जाओ, भिन्न-भिन्न प्रातोक हजारो नर-नारी दिखाई देंगे । कोई माला फेरते, कोई ध्यान लगाए, कोई अपने मृतक माता, पिता या पत्नीके फूल गगामे डालते और कोई उन्हें पैसेके लालचसे चुनते, दिखाई देंगे । यहा श्रद्धाका एक वाजारःसा लगा दिखाई पडता हैं । गगा नहांकर मुभके बड़ी प्रसन्नता हुईं । मे तो इधर अच्छे ठडे पानीका मजा ही भूल गया था । मेरा खयाल हू कि यहा एक अच्छा प्राकृतिक चिकित्सालय हो तो हफ्ते-दो-हफ्तेमे ही काफी रोगी आराम करके घर भेजे जा सकते है। जलका नाम




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