छीत स्वामी | Chhit Sawami
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
कंठमणि शास्त्री - Kanthmani Shastri,
गोकुलानंद शर्मा - Gokulanand Sharma,
ब्रजभूषण शर्मा - Brajbhushan Sharma
गोकुलानंद शर्मा - Gokulanand Sharma,
ब्रजभूषण शर्मा - Brajbhushan Sharma
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
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कंठमणि शास्त्री - Kanthmani Shastri
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गोकुलानंद शर्मा - Gokulanand Sharma
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ब्रजभूषण शर्मा - Brajbhushan Sharma
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१५
नारियल भौर रुपया यद्द दोनों उनके जीवन क्षौर व्यवहार के प्रतीक
थे | सव्सामयिक भारतीय जीवन भी तो इसी प्रकार था । शापावत-
रमणीय वाह्मत” सुन्दर, कन्ततः सारद्दीन, अनुपादेय झौर अव्यावदारिक
मले ही नारियल जैसे नागरिक जत्वन के सीतर डु सग की राख भरी गड़े दो,
पर था तो वद्द मांगलिक श्रीफल ही १ उसकी उपादेयता में तो संशय नहीं
था 1 खोटा रुपया भले ही वाजार में प्रचलित न दो ! पर उसकी सुद्ा तो
स्पष्ट थी * सो सदसद्वेकी मद्दोदार चरिन्नवादू श्रीविट्लेश उभय विध इन
वस्तुभों का परित्याग केसे कर सकते थे ? उन्होंने उसे परोक्षत स्वीकार
कर लिया |
उपाह्त वस्तु्ों को वास्तविक रूप में स्वोकारते हुए प्रभुचरण ने श्री मुख
से कद्दा : * छीतस्वामी ! तुम नीके हो ! श्लारो भाउ, बहोत दिनन में देखे '
अनुग्रइ मार्ग की निसर्ग करुणा ने उस दिव से ' छीतू चौत्रे * को * छीत-
स्वाभी * के रूप में ढाल दिया। उनकी कुटिकता को ' नीके * रूप में
परिमार्जित कर दिया । ' कागे आठ ” ने उन्हें पीछ्ले न रद जाने के स्थान
पर भागे वढ़ चलने को प्रोत्साहित किया । भौर * वद्दोत दिनन में देखे *
ने सदस्र परिवत्सर से वियुक्त जीव को दृष्टि-परिदूत कर संयोग-सुधा से
झमिपिक्त कर दिया । देखते ही देखते * छीत् चौथे * * छीतस्वामी * वन
गए | खोखला नारियल सरस श्रीफल एवं खोटा रुपया मुद्रा रूप में
प्रचलित हो गया ।
इस प्रकार * छीतू चौचे * के नाम-रूप, पदार्थ व्यवहार सभी अस्त से
सत् में, भन्घकार से नालोक में+ पिझुनता से शार्जव में परिणत हो गए ।
कलिन्द्नन्दिनी श्रीयसुना के तटवासी मधुरिया चोवे को सदूगुरु को झरणागति
ने * तज्नुनवत्व ६ का प्रतीक वना दिया ।
सम्प्रदाय के प्रवेश के वाद छीतस्वामी के भावुक हृदय पर भक्ति-सुधा
मिचन से जो स्निग्वता छाई, वद उनके लिये वरदान सिद्ध हो गई ।
परिणामत. वे * सष्टछाप * लेसी महदीय दोलठी में प्रतिष्ठित किये गये ।
ना
+ असतों मा सदूगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय [ श्रुति ]
>६ तनुनवलमेतावता न दुलभतमा रति । [ यमुनाधइक ]
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