नव वर्ष की रात्रि | Nav Varsh Ki Ratri
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about विनोदचंद्र पाण्डेय -Vinodchandra Pandey
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उपनिषद् की शैली मे बातचीत कर रही है। क्या यह देह तुम्हारा है? क्या
बाल तुम्हारे है? क्या हाथ तुम्हारे है ? क्या पांव तुम्हारे है ? क्या लिंग तुम्हारा
है? वह पांच बार अपने प्रश्नों का उत्तर स्वयं ही देती है । नहीं, नहीं, नही,
नही, नहीं ! क्या मन तुम्हारा है? इस बार उत्तर मे वह अपनी अंगुली
गाकाश की ओर उठा देती है। आकाश उसके मुख के बिल्कुल पास है, उसमें
बड़े-बड़े ग्रह तैर रहे है । उनके विभिन्न रग है। लाल, नीला, मोती जैसा
चवेत, प्रखर चमकीला, घुए के रंग जैसा । सबसे अधिक प्रकाश चन्द्रमा में है ।
वह एकटक अपने चन्द्रमा की ओर देखता है । चन्द्रमा में एक ग्रहण का बिन्दु
है। और बढ रहा है।
वह घबराकर पूछता है, “क्या मैं इस ग्रहण को रोक सकता हुं ? ”
वह नीली बुद्धि उत्तर देती है, “क्यो नही । मैं जो तुम्हारे साथ हु।”'
“आप कहा है?”
“मेरा लोक गहराई से भी गहरा है। ऊंचाई से भी ऊंचा । भौर तुम्हें
लग रही ठंड से भी ठंडा ।”
फिर उसे ठंड लग-लगकर बुखार की कंपकंपी आ रही थी । गले के दरें,
बायें मुख पर कई जगह तीब्र टीस और जलन, बहुत कमज़ोरी । दूर की आवाजें
पास आने लगीं ।
अस्पताल
(१ जनवरी )
रात्रि ०० -३०
डाक्टर दास बोट हाउस क्लब में ही थे । उन्होने आते ही मुख और गले'
पर पानी फेके जाने पर आपत्ति की। बलराम गहरी नींद में लगता था ।
सुलेखा, राजाशाह और सरोज ( मेरा घर उसी तरफ है”) डांडी के साथ रिक्शों
में मिशन अस्पताल चले ।
काच के टूकड़े निकाल लेने के पश्चात् सिर के चारों ओर होती तथा मुख
के चारों ओर जाती पट्टी बांधी गई। सामने चेहरा सुजा भी हुआ था। गले
में ठंड लगने के कारण (या चोट के कारण) सिफें एक भर्राई आवाज़ निकलती
र्भ
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