प्रवचन पाथेय भाग | Pravachan Pathey
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
आचार्य तुलसी - Acharya Tulsi
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श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मर्यादा महोत्सव है
इसमें १४० साधु और ३९३ साध्वियां सम्मिलित हैं । चार तीर्थ मे ठाट लग
रहे हैं ।
यहां तक मैंने विधान के वारे मे बताया । अव साधु-साध्वियों को
सम्बोधित करके इन्हे भी दो शब्द कहता है।
समस्त साघु गौर साध्वियों को यही शाश्वत शिक्षा है कि तुम अपने
मुल लक्ष्य को मत भुलो । तुम्हारा पहला लक्ष्य है आचार में दृढ़ रहना
आचारहीन विचार क्रांति कोई काम की नहीं । मुल लक्ष्य पर वद्ध होकर
चलो । जानते हो अब विदाई होनेवाली है । मेरी भी विदाई होने वाली है ।
मैं आपके साथ नही रहूंगा, फिर भी स्हूगा साथ मे । हर पल संयम मे जागरूक
'रहो। स्वार्थी मत बनो । जो लोग कल्याण का मार्ग चाहते है उन्हे रास्ता
दिखाओ । निभंय होकर व्यक्ति-व्यक्ति मे धर्म का प्रसार करो । चाहे इसके
लिये कुछ भी कुर्वान क्यो न करना पड़े ।
अब श्रावकों को कुछ कहना है--श्रावक-श्रादिका भी सचेष्ट और
जागरूक रहे । मैं उनकी ऐसी हरकते नहीं सुनना चाहता कि वे जीवन को न
उठाकर थोथी नुक्ताचीनी मे समय बिता रहे है । उन्हें आत्मालोचना में समय
लगाना चाहिये ।
मुझे कभी-कभी ऐसा सुनने मे आता है कि तेरापन््थ का संगठन अब
क्या चलेगा, बहुत चला । जैसा कि समय-समय पर पहले भी सुना जाता रहा
है। मैं उन्हे स्पप्ट कह देना चाहता हू कि यह भगवान महावीर का पंथ है,
त्यागियों का पन्थ है । इसके प्रति यदि वे ऐसा स्वप्न देखते है तो बह स्वप्न
होगा । संगठन था, है और रहेगा । इस संघ की नीव आचार पर टिकी
हुई है ।
सभी श्रावक जीवन वदलें और जीवन को उठाने के कार्य में सहयोगी
घनें ।
मैं एक वार फिर संघचतुष्टय से आह्वान करूंगा कि वह आरत्म-कल्याण
के लिये एकनिष्ठ प्रयत्त करे ।
ससार अशान्त है, यह कोई नई वात नहीं है । परिस्थितियां विपम है
यह भी कोई नई वात नहीं । ससार शान्ति की ओर आखे फाड़े निहार रहा है,
यह भी कोई नई वात नहीं । पर शान्ति मिले कैसे ? उसे पाने का क्या रास्ता
है? किस मार्ग से हम उसे पा सकते है, यह देखना है । भौतिक सुख-
सुविधाओं और भोग-विलासों से शान्ति की आशा रखना तो ठीक वैसा ही है
जैसा कि एक व्यक्ति गाय-भेस इसलिये न रखे कि उन्हे खिलाने-पिलाने का
कष्ट कौन करे ? दूध और दही भी वह न रखे और चाहे ,कि सिफं पानी
को मथ कर घी निकाल ले । भाइयों ! यह तो होने का नही । पानी से घी
मिल सके तो भौतिकता मे लिप्त रहकर दुनिया भी सुख पा सकती है !
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