जैन निबन्ध रत्नावली भाग - 2 | Jain Nibandh Ratnavali Bhag - 2

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jain Nibandh Ratnavali Bhag - 2   by मिलापचन्द्र कटारिया - Milapachandra Katariya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about मिलापचन्द्र कटारिया - Milapachandra Katariya

Add Infomation AboutMilapachandra Katariya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
जच्ाा। पर सुप्रसिद्ध वीतरागी सन्तो के ग्रन्थों में प्रतिपादित विषयों से भी विरुद्ध पड़ते हैं । यहाँ मैं उन प्रथो को विस्तृत चर्चा नही करना चाहता कारण वह विषयान्तर हो जायेगा तथापि “श्रिवर्णाचार'', “'सर्वोदय तीथे' मादि इसी कोटि के अनेक ग्रन्थ हैं । द्वादशाग का सूल रूप पुर्ण अ-प्रकट है मात्र उनके आंशिक ज्ञान के आधार पर ही आचायों ने षपट्खडागम-कषायपाहुड-गोम्मटसार महा- पुराण-रत्नकरण्ड श्रावकाचार-ब्रिलोकसार लब्धिसार आदि ग्रम्थो का निर्माण किया है । आचाराग आदि अग और उत्पाद पूर्वादि पूर्वों का सदुभाव नही है तो भी आज लघु विद्यानुवाद) आदि नाम से कल्पित ग्रन्थ प्रकाश में आर जनका विषय और प्रक्रिया स्पष्ट रूप से जन धर्म के मूल सिद्धातो के प्रतिकूल है । डद्पचायों के नाम से शासन देवता पूजा के _ के नाम ं जा के ग्रन्थ ज्वालामालनी कल्प, भरव-पदुमाबती कल्प आदि प्रकाशित है जिनमे मात्र उनकी पूजा आदि ही जिनागस विरुद्ध नही, किन्तु पुजा पद्धति भी हिंसा पूर्ण अभक्ष, अदाटम पता पदार्थों से. लिखी गई है जेन_प्रचिष्ठा पाठो के नाम पर गोव्र-पुजा-आरते का भी विधान लिखा गया है । यह ट्रज-कप्रेश-कर्पित है । अथवा ट करते का ही प्रयास उन लेखकों, द्वारा कट्पित जेनाचायों के कल्पित नाम पर क्रिया गया है । स्व० प० मिलापचन्दजी कटा रिया ने अपने अनेक पोध पूर्ण जेखो मे कतिपय विधयो का विश्लेषण करते हुये उनके




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now